स॒त्यं तत्तु॒र्वशे॒ यदौ॒ विदा॑नो अह्नवा॒य्यम् । व्या॑नट् तु॒र्वणे॒ शमि॑ ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
satyaṁ tat turvaśe yadau vidāno ahnavāyyam | vy ānaṭ turvaṇe śami ||
पद पाठ
स॒त्यम् । तत् । तु॒र्वशे॑ । यदौ॑ । विदा॑नः । अ॒ह्न॒वा॒य्यम् । वि । आ॒न॒ट् । तु॒र्वणे॑ । शमि॑ ॥ ८.४५.२७
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:45» मन्त्र:27
| अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:47» मन्त्र:2
| मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:27
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र परमैश्वर्य्ययुक्त महादेव ! आपकी कृपा से (इह) इस संसार में (त्वा) तुम्हारे उद्देश से (महे+राधसे) बहुत धनों की प्राप्ति के उत्सव के लिये (गोपरीणसा) गौवों के दूध, दही आदि पदार्थों से (मन्दन्तु) गृहस्थ जन परस्पर आनन्दित होवें और पुरुषार्थ करें। हे महेन्द्र ! (यथा) जैसे (गौरः) तृषित मृग (सरः) सरस्थ जल पीता है, तद्वत् आप बड़ी उत्कण्ठा के साथ यहाँ आकर (पिब) हमारे समस्त पदार्थों का अवलोकन करें ॥२४॥
भावार्थभाषाः - जब-२ नवीन अन्न या अधिक लाभ हो, तब-२ मनुष्य को उचित है कि वे ईश्वर के नाम पर अपने परिजनों तथा मित्रों को बुलाकर उत्सव करें और ईश्वर को धन्यवाद देवें ॥२४॥
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! इह=संसारे। त्वा=त्वदुद्देशेन। महे=महते। राधसे=धनाय। जनाः। गोपरीणसा=गवां दग्धैः दधिभिः घृतप्रभृतिभिश्च। मन्दन्तु=आनन्दन्तु परस्परम्। हे इन्द्र ! तृषितः। गौरो मृगः। सरः=सरस्थं जलं पिबति। तथा त्वमपि। पिब=उत्कटेच्छया सर्वमवलोकय ॥२४॥