वृ॒ज्याम॑ ते॒ परि॒ द्विषोऽरं॑ ते शक्र दा॒वने॑ । ग॒मेमेदि॑न्द्र॒ गोम॑तः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
vṛjyāma te pari dviṣo raṁ te śakra dāvane | gamemed indra gomataḥ ||
पद पाठ
वृ॒ज्याम॑ । ते॒ । परि॑ । द्विषः॑ । अर॑म् । ते॒ । श॒क्र॒ । दा॒वने॑ । ग॒मेम॑ । इत् । इ॒न्द्र॒ । गोऽम॑तः ॥ ८.४५.१०
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:45» मन्त्र:10
| अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:43» मन्त्र:5
| मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:10
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - (आजिकृत्) सांसारिक प्रत्येक कार्य्य के साथ युद्धकृत् (इन्द्रः) वह बलिष्ठ ईश्वर-भक्तपरायण आत्मा (स्वश्वयुः) मनोरूप अश्व को चाहता हुआ (यद्) जब (आजिम्) संग्राम में (उपयाति) पहुँचता है, तब (रथीनाम्) सब महारथों में (रथीतमः) श्रेष्ठ रथी होता है ॥७॥
भावार्थभाषाः - प्रत्येक मनुष्य को निज अनुभव है कि उसको प्रतिदिन कितना युद्ध करना पड़ता है। जीविका के लिये प्रतिष्ठा और मर्य्यादा के लिये समाज में प्रतिष्ठित होने के लिये एवं व्यापारादि में ख्याति लाभ के लिये मनुष्य को सदा युद्ध करना ही पड़ता है। इन सबसे भी अधिक उस समय घोर समर रचना पड़ता है, जब किसी प्रिय अभीष्ट वस्तु के लाभ की चिन्ता उपस्थित होती है। कितने युवक अभी युवती न पाकर आत्म-हत्या की गोद में जा बैठे, परन्तु जब ज्ञानी आत्मा युद्ध में भी जाता है, तब वह सुशोभित ही होता है ॥७॥
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - आजिकृत्। सांसारिककार्यैः सह युद्धकृत्। इन्द्रः=आत्मा। स्वश्वयुः=शोभनमश्वमिच्छन्। यद्=यदा। आजिम्= समरमुपयाति। तदा रथीनां मध्ये। स एव। रथितमः=अतिशयेन रथीभवति ॥७॥