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धीरो॒ ह्यस्य॑द्म॒सद्विप्रो॒ न जागृ॑वि॒: सदा॑ । अग्ने॑ दी॒दय॑सि॒ द्यवि॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dhīro hy asy admasad vipro na jāgṛviḥ sadā | agne dīdayasi dyavi ||

पद पाठ

धीरः॑ । हि । असि॑ । अ॒द्म॒ऽसत् । विप्रः॑ । न । जागृ॑विः । सदा॑ । अग्ने॑ । दी॒दय॑सि । द्यवि॑ ॥ ८.४४.२९

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:44» मन्त्र:29 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:41» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:29


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - मैं उपासक (अग्निम्) सर्वगत महेश्वर को (मन्मभिः) मननीय स्तोत्रों से (शुम्भामि) सुभूषित करता हूँ, जो ईश (युवानम्) प्रकृति और जीवों को एक साथ मिलानेवाला है, (विश्पतिम्) समस्त प्रजाओं का एक अधिपति है, (कविम्) महाकवीश्वर है, (विश्वादम्) सबका भक्षक अर्थात् संहर्ता है, पुनः (पुरुवेपसम्) सर्वविध कर्मकारी है ॥२६॥
भावार्थभाषाः - वह परमात्मा महान् देव है, सबका अधिपति है, कर्त्ता, धर्ता, संहर्ता वही है। उसको जैसे विद्वान् पूजते, गाते और उसकी आज्ञा पर चलते, वैसा ही सब करें ॥२६॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - अहमुपासकः। अग्निं=सर्वगतं देवम्। मन्मभिः=मननीयैः स्तोत्रैः। शुम्भामि=शोभयामि=स्तौमीत्यर्थः। कीदृशं युवानम्=प्रकृतिजीवयोर्मिश्रयितारम्। पुनः। विश्पतिम्= विशां प्रजानां पतिम्। कविम्=कवीश्वरम्। विश्वादम्=सर्वभक्षकम्=सर्वसंहारकमित्यर्थः। पुरुवेपसम्= बहुकर्माणम्। वेशो वेप इति कर्मनामसु पठितौ ॥२६॥