अ॒यम॑ग्ने॒ त्वे अपि॑ जरि॒ता भू॑तु सन्त्य । तस्म॑स पावक मृळय ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
ayam agne tve api jaritā bhūtu santya | tasmai pāvaka mṛḻaya ||
पद पाठ
अ॒यम् । अ॒ग्ने॒ । त्वे इति॑ । अपि॑ । ज॒रि॒ता । भू॒तु॒ । स॒न्त्य॒ । तस्मै॑ । पा॒व॒क॒ । मृ॒ळ॒य॒ ॥ ८.४४.२८
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:44» मन्त्र:28
| अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:41» मन्त्र:3
| मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:28
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे सर्वगत सर्वव्यापी देव ! मुझ उपासक के (वाश्रासः) इच्छुक या स्थिर (गिरः) वचन (ते) आपकी ओर (ईरते) दौड़ते हैं, जिस आप ने (धृतव्रताय) जगत् के कल्याण के लिये सुदृढ़तर नियम स्थापित किए हैं। यहाँ दृष्टान्त देते हैं (इव) जैसे (सिन्धवः) नदियाँ (समुद्राय) समुद्र की ओर दौड़ती हैं, तद्वत् मेरी वाणी.... ॥२५॥
भावार्थभाषाः - यह शरीरस्थ जीव ईश्वर का सखा और सेवक है, यह अपने स्वामी का महान् ऐश्वर्य्य चिरकाल से देखता आता है। यद्यपि शरीरबद्ध होने से कुछ काल के लिये यह स्वामी से विमुख हो रहा है, तथापि इसकी स्वाभाविकी गति ईश्वर की ओर ही है, जैसे नदियों की गति समुद्र की ओर है॥२५॥
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शिव शंकर शर्मा
पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने=सर्वगत देव ! ममोपासकस्य। वाश्रासः=कामयमानाः। गिरः=वचनानि स्तोत्ररूपाणि वा। स्वभावतः। धृतव्रताय=दृढनियमाय। ते। ईरते=त्वामुद्दिश्य प्रवर्तन्ते। अत्र दृष्टान्तः=समुद्रायेव सिन्धवः=यथा नद्यः समुद्रमभिगच्छन्ति ॥२५॥