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अ॒ग्निं धी॒भिर्म॑नी॒षिणो॒ मेधि॑रासो विप॒श्चित॑: । अ॒द्म॒सद्या॑य हिन्विरे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agniṁ dhībhir manīṣiṇo medhirāso vipaścitaḥ | admasadyāya hinvire ||

पद पाठ

अ॒ग्निम् । धी॒भिः । म॒नी॒षिणः॑ । मेधि॑रासः । वि॒पः॒ऽचितः॑ । अ॒द्म॒ऽसद्या॑य । हि॒न्वि॒रे॒ ॥ ८.४३.१९

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:43» मन्त्र:19 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:32» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:19


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शिव शंकर शर्मा

परमात्मा सखा है, यह बारंबार कहा जाता है। यहाँ उसमें भ्रातृत्व का भी आरोप करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (भ्रातः) हे जीवों के भरणपोषणकर्ता (सहस्कृत) हे जगत्कर्ता (रोहिदश्व) हे संसाराश्वारूढ़ (शुचिव्रत) हे शुद्ध नियमविधायक (अग्ने) परमात्मन् ! (मे) मेरे (इमम्+स्तोमम्) इस स्तोत्र को (जुषस्व) कृपया ग्रहण कीजिये ॥१६॥
टिप्पणी: सहस्कृत, रोहिदश्व आदि पद आग्नेय सूक्तों में अधिक आते हैं। ईश्वर और भौतिक अग्नि इन दोनों पक्षों में दो अर्थ होंगे। लोक में भी ऐसे बहुत उदाहरण आते हैं। ईश्वर पक्ष में सहस्=संसार अथवा बल, बलदाता भी वही है अग्नि पक्ष में केवल बल। इसी प्रकार रोहित आदि पदों का भी भिन्न-भिन्न अर्थ करना चाहिये ॥१६॥
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शिव शंकर शर्मा

परमात्मा सखास्तीति बहुशः प्रतिपाद्यते। अत्र भ्रातृत्वमपि तस्मिन्नारोप्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे भ्रातः=जीवानां भरणकर्त्तः ! हे सहस्कृत=सहसां जगतां कर्तः ! हे रोहिदश्व=इदं जगदेव रोहित् उत्पत्तिमत् तदेव अश्वोऽश्ववद्वाहनं यस्य। तत्सम्बोधने। हे रोहिदश्व=संसाराश्वारूढ ! हे शुचिव्रत=शुद्धनियम ! हे अग्ने=परमात्मन् ! मे=ममोपासकस्य। इमं स्तोमं जुषस्व ॥१६॥