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उ॒त त्वा॑ भृगु॒वच्छु॑चे मनु॒ष्वद॑ग्न आहुत । अ॒ङ्गि॒र॒स्वद्ध॑वामहे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta tvā bhṛguvac chuce manuṣvad agna āhuta | aṅgirasvad dhavāmahe ||

पद पाठ

उ॒त । त्वा॒ । भृ॒गु॒ऽवत् । शु॒चे॒ । म॒नु॒ष्वत् । अ॒ग्ने॒ । आ॒ऽहु॒त॒ । अ॒ङ्गि॒र॒स्वत् । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥ ८.४३.१३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:43» मन्त्र:13 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:31» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:13


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शिव शंकर शर्मा

बाह्यजगत् में अग्निक्रिया दिखला कर होमीय अग्निक्रिया कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे अग्ने ! (आहुतम्) नाना द्रव्यों से आहुत (तव+तद्+अर्चिः) तेरी वह ज्वाला (घृतात्) घृत की सहायता से (उद्+रोचते) ऊपर जाकर प्रकाशित होती है। पुनः (जुह्वः) जुहू नाम की स्रुवा के (मुखे+निंसानम्) मुख में चाटती हुई वह ज्वाला शोभित होती है ॥१०॥
भावार्थभाषाः - इससे वेद भगवान् यह शिक्षा देते हैं कि अग्नि में प्रतिदिन विविध सामग्रियों से होम किया करो, होम के लिये जुहू, उपभृत्, स्रुक् आदि नाना साधन तैयार करले और यह ध्यान रक्खे कि धूम न होने पावे किन्तु निरन्तर ज्वाला ही उठती रहे। इस प्रकार हवन से अनेक कल्याण होंगे ॥१०॥
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शिव शंकर शर्मा

बाह्यजगति अग्निक्रियां दर्शयित्वा होमीयाग्निक्रियामाह।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! आहुतम्=नानाद्रव्यैः सहुतम्। तव। तदर्चिः=सा ज्वाला। घृतात्। उद्रोचते। ऊर्ध्वं गत्वा प्रकाशते। पुनः। जुह्वः=जुहू=स्त्रुक्। तस्या मुखे। निंसानं=लिहानं तदर्चिः प्रकाशत इत्यर्थः ॥१०॥