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उ॒क्षान्ना॑य व॒शान्ना॑य॒ सोम॑पृष्ठाय वे॒धसे॑ । स्तोमै॑र्विधेमा॒ग्नये॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ukṣānnāya vaśānnāya somapṛṣṭhāya vedhase | stomair vidhemāgnaye ||

पद पाठ

उ॒क्षऽअ॑न्नाय । व॒शाऽअ॑न्नाय । सोम॑ऽपृष्ठाय । वे॒धसे॑ । स्तोमैः॑ । वि॒धे॒म॒ । अ॒ग्नये॑ ॥ ८.४३.११

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:43» मन्त्र:11 | अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:31» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:6» मन्त्र:11


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शिव शंकर शर्मा

फिर उसी विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निः) यह भौतिक अग्नि (जिह्वाभिः+अह) अपनी ज्वालाओं से ही (नन्नमद्) समस्त वनस्पतियों को नम्र करता हुआ और (अर्चिषा) तेज से (जञ्जणाभवन्) जलता हुआ (वनेषु) वनों में (रोचते) प्रकाशित हो रहा है ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यों ! प्रथम भौतिक अग्नि के गुणों का पठन-पाठन करो। देखो, कैसी तीक्ष्ण इसकी गति है और इससे कौन-२ कार्य्य हो रहे हैं ॥८॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तमेवार्थमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - अग्निः। जिह्वाभिरह=जिह्वाभिरेव=स्वकीयज्वालाभिरेव। सर्वान् वनस्पतीन्। नन्नमद्=अत्यन्तं नमयन्। अर्चिषा=तेजसा। जञ्जणाभवन्=ज्वलन्। “जञ्जणाभवन् मल्मलाभवन्निति ज्वलतिकर्मसु पाठः”। वनेषु। रोचते=प्रकाशते ॥८॥