इ॒मा जु॑षेथां॒ सव॑ना॒ येभि॑र्ह॒व्यान्यू॒हथु॑: । इन्द्रा॑ग्नी॒ आ ग॑तं नरा ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
imā juṣethāṁ savanā yebhir havyāny ūhathuḥ | indrāgnī ā gataṁ narā ||
पद पाठ
इ॒मा । जु॒षे॒था॒म् । सव॑ना । येभिः॑ । ह॒व्यानि॑ । ऊ॒हथुः॑ । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । आ । ग॒त॒म् । न॒रा॒ ॥ ८.३८.५
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:38» मन्त्र:5
| अष्टक:6» अध्याय:3» वर्ग:20» मन्त्र:5
| मण्डल:8» अनुवाक:5» मन्त्र:5
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शिव शंकर शर्मा
पुनः उसी को कहते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्राग्नी+तस्य+बोधतम्) हे क्षत्रिय ! तथा हे ब्राह्मण ! यद्वा हे राजन् ! तथा दूत ! आप दोनों इस बात का पूरा ध्यान रक्खें कि आप दोनों (तोशासा) शत्रुसंहारक (रथयावाना) रथ पर चलनेवाले (वृत्रहणौ) निखिल विघ्नविनाशक और (अपराजिता) अपराजित=अन्यों से अजेय हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - जिस हेतु ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों प्रत्येक प्रकार के विघ्नों के शमन करनेवाले हैं, अतः वे कभी न अपना अधिकार भूलें और न उससे प्रमाद करें ॥२॥
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शिव शंकर शर्मा
पुनस्तदेवाह।
पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्राग्नी=क्षत्रियब्राह्मणौ राजदूतौ वा। तस्य बोधतम्=तदेतज्जानीतम्। युवाम्। तोशासा=शत्रूणां हिंसकौ। पुनः रथयावाना=रथेन गन्तारौ। वृत्रहणौ=विघ्नविनाशकौ। अपराजिता=अपराजितौ ॥२॥