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अ॒क्ष्णश्चि॑द्गातु॒वित्त॑रानुल्ब॒णेन॒ चक्ष॑सा । नि चि॑न्मि॒षन्ता॑ निचि॒रा नि चि॑क्यतुः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

akṣṇaś cid gātuvittarānulbaṇena cakṣasā | ni cin miṣantā nicirā ni cikyatuḥ ||

पद पाठ

अ॒क्ष्णः । चि॒त् । गा॒तु॒वित्ऽत॑रा । अ॒नु॒ल्ब॒णेन॑ । चक्ष॑सा । नि । चि॒त् । मि॒षन्ता॑ । नि॒ऽचि॒रा । नि । चि॒क्य॒तुः॒ ॥ ८.२५.९

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:25» मन्त्र:9 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:22» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:9


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शिव शंकर शर्मा

उनके गुण दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - पुनः वे मित्र और वरुण (अक्ष्णः+चित्) नेत्र से भी बढ़कर उत्तम (गातुवित्तरा) मार्गवेत्ता हों और (निमिषन्ता+चित्) सब वस्तुओं को उस समय भी देखते हों, जब वे स्वयं (निचिरा) आँखें बन्द रखते हैं अर्थात् ज्ञानचक्षु से सब पदार्थ देखें, चर्मचक्षु से नहीं, फिर (अनुल्वणेन) प्रसन्न (चक्षसा+नि+चिक्यतुः) नेत्र से सब कुछ निश्चय करें ॥९॥
भावार्थभाषाः - वे दोनों सब वस्तु में बड़े ही तीक्ष्ण हों। शीघ्र मानवगति के परिचायक हों और प्रसन्न नयन से प्रजाओं को देखें ॥९॥
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शिव शंकर शर्मा

तयोर्गुणान् दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - पुनः। तौ मित्रावरुणौ। अक्ष्णः+चित्=नयनादपि। उत्तमौ। गातुवित्तरा=मार्गवेत्तारौ। पुनः। निमिषन्ता+चित्= सर्वमुन्मेषयन्तौ। निचिरा=निचिरौ=बद्धनयनौ। पुनः। अनुल्वणेन=प्रसन्नेन। चक्षसा=नेत्रेण। सर्वं निचिक्यतुः=नितरां चिनुतः ॥९॥