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तदि॒न्द्राव॒ आ भ॑र॒ येना॑ दंसिष्ठ॒ कृत्व॑ने । द्वि॒ता कुत्सा॑य शिश्नथो॒ नि चो॑दय ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tad indrāva ā bhara yenā daṁsiṣṭha kṛtvane | dvitā kutsāya śiśnatho ni codaya ||

पद पाठ

तत् । इ॒न्द्र॒ । अवः॑ । आ । भ॒र॒ । येन॑ । दं॒सि॒ष्ठ॒ । कृत्व॑ने । द्वि॒ता । कुत्सा॑य । शि॒श्न॒थः॒ । नि । चो॒द॒य॒ ॥ ८.२४.२५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:24» मन्त्र:25 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:19» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:25


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शिव शंकर शर्मा

उसकी प्रार्थना दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे ईश ! (दंसिष्ठ) हे परमाद्भुत ! हे परम दर्शनीय ! हे सर्वविघ्नविनाशक ! तू (तत्+अवः) यह सहायता और रक्षा हम लोगों को (आभर) दे, जिससे (कृत्वने) कर्म करनेवाले (कुत्साय) जगत् के कुकर्मों की निन्दा करनेवाले संसार के दोषों को दिखलानेवाले ऋषि के लिये (द्विता) दो प्रकार के शारीरिक और मानसिक शत्रुओं को (शिश्नथः) हनन करता, उसी रक्षा की (निचोदय) सर्वत्र प्रेरणा कर ॥२५॥
भावार्थभाषाः - जैसे ईश्वर समदृष्टि है, वैसे यथासम्भव हम भी होवें ॥२५॥
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शिव शंकर शर्मा

तस्य प्रार्थनां दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र=हे ईश ! हे दंसिष्ठ=परमाद्भुत ! परमदर्शनीय ! परमविघ्नविनाशक देव ! तदवः=तद्रक्षणम्। अस्मभ्यम्। आभर। येन रक्षणेन। कृत्वने=कर्म कुर्वते। कुत्साय=जगन्निन्दकाय ऋषये। द्विता=द्विविधान् शत्रून्। शिश्नथः=हंसि। तदेव पालनम्। सर्वत्र निचोदय=नितरां प्रेरय ॥२५॥