शव॑सा॒ ह्यसि॑ श्रु॒तो वृ॑त्र॒हत्ये॑न वृत्र॒हा । म॒घैर्म॒घोनो॒ अति॑ शूर दाशसि ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
śavasā hy asi śruto vṛtrahatyena vṛtrahā | maghair maghono ati śūra dāśasi ||
पद पाठ
शव॑सा । हि । असि॑ । श्रु॒तः । वृ॒त्र॒ऽहत्ये॑न । वृ॒त्र॒ऽहा । म॒घैः । म॒घोनः॑ । अति॑ । शू॒र॒ । दा॒श॒सि॒ ॥ ८.२४.२
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:24» मन्त्र:2
| अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:15» मन्त्र:2
| मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:2
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शिव शंकर शर्मा
इससे इन्द्र की स्तुति करते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! (हि) निश्चय तू (शवसा) अपनी अचिन्त्य शक्ति से (श्रुतोऽसि) प्रसिद्ध है (वृत्रहत्येन+वृत्रहा) वृत्र जो विघ्न उनके नाश करने के कारण तू वृत्रहा इस नाम से प्रसिद्ध होता है, (शूर) हे महावीर ! (मघोनः) जितने धनिक पुरुष जगत् में हैं, उनसे (मघैः) धनों के द्वारा (अति) तू अतिश्रेष्ठ है और उनसे कहीं अधिक (दाशसि) अपने भक्तों को देता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - इससे दो बातें दिखलाई गई हैं, एक परमात्मा सर्वविघ्नविनाशक है और दूसरा वह परम दानी है ॥२॥
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शिव शंकर शर्मा
इन्द्रं स्तौति।
पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! त्वम्। शवसा=महत्या शक्त्या हि। श्रुतोऽसि=प्रसिद्धोऽसि त्वम्। वृत्रहत्येन=वृत्राणां विघ्नानां विनाशेन हेतुना। वृत्रहेति प्रसिद्धोऽसि। हे शूर ! मघोनः=धनवतः पुरुषान्। मघैर्धनैरतिक्रम्य। त्वं स्तोतृभ्यः। दाशसि=प्रयच्छसि ॥२॥