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न॒ह्य१॒॑ङ्ग नृ॑तो॒ त्वद॒न्यं वि॒न्दामि॒ राध॑से । रा॒ये द्यु॒म्नाय॒ शव॑से च गिर्वणः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nahy aṅga nṛto tvad anyaṁ vindāmi rādhase | rāye dyumnāya śavase ca girvaṇaḥ ||

पद पाठ

न॒हि । अ॒ङ्ग । नृ॒तो॒ इति॑ । त्वत् । अ॒न्यम् । वि॒न्दामि॑ । राध॑से । रा॒ये । द्यु॒म्नाय॑ । शव॑से । च॒ । गि॒र्व॒णः॒ ॥ ८.२४.१२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:24» मन्त्र:12 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:17» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:12


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शिव शंकर शर्मा

पुनः उसी को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (नृतो) हे जगन्नर्तक ! (गिर्वणः) हे स्तुतियों के प्रिय स्वामी इन्द्र ! (राधसे) सम्पत्ति के लिये (राये) अभ्युदय के लिये (द्युम्नाय) द्योतमान यश के लिये (शवसे+च) और परम सामर्थ्य के लिये (त्वत्+अन्यम्+नहि) तुमसे भिन्न किसी अन्य देव को नहीं (विन्दामि+अङ्ग) पाता हूँ, यह प्रसिद्ध है ॥१२॥
भावार्थभाषाः - सामर्थ्य, धन और यश भी उसी से प्राप्त हो सकता है, अतः वही प्रार्थनीय है ॥१२॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तमर्थमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - हे नृतो=जगन्नर्तक ! हे गिर्वणः=गिरां स्तुतिरूपाणां वचनानां प्रिय। इन्द्र ! राधसे=सम्पत्त्यै। राये=अभ्युदयाय। द्युम्नाय=द्योतमानाय यशसे। शवसे+च=सामर्थ्याय च। त्वदन्यम्=त्वद्भिन्नं देवम्। नहि। विन्दामि=लभे= आश्रयामीत्यर्थः। अङ्गेति प्रसिद्धौ ॥१२॥