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अ॒ग्निं व॑: पू॒र्व्यं हु॑वे॒ होता॑रं चर्षणी॒नाम् । तम॒या वा॒चा गृ॑णे॒ तमु॑ वः स्तुषे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agniṁ vaḥ pūrvyaṁ huve hotāraṁ carṣaṇīnām | tam ayā vācā gṛṇe tam u vaḥ stuṣe ||

पद पाठ

अ॒ग्निम् । वः॒ । पू॒र्व्य॑म् । हु॒वे॒ । होता॑रम् । च॒र्ष॒णी॒नाम् । तम् । अ॒या । वा॒चा । गृ॒णे॒ । तम् । ऊँ॒ इति॑ । वः॒ । स्तु॒षे॒ ॥ ८.२३.७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:23» मन्त्र:7 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:10» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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शिव शंकर शर्मा

अग्नि प्रार्थनीय है, यह इससे दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यों ! मैं उपासक (वः) तुम्हारे कल्याण के लिये (पूर्व्यम्) पुरातन (चर्षणीनाम्+होतारम्) प्रजाओं को सब कुछ देनेवाले (अग्निम्) सर्वाधार ईश्वर का (हुवे) आह्वान करता हूँ, पुनः मैं तुम्हारे मङ्गल के लिये (अथा+वाचा) इस वचन से (तम्) उसकी (गृणे) प्रशंसा करता हूँ (तम्) और उसी की (स्तुषे) स्तुति करता हूँ ॥७॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों को उचित है कि वे सबके कल्याण के लिये ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना करें ॥७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे याज्ञिक पुरुषो ! (वः) तुम्हारे (चर्षणीनाम्) मनुष्यों के (होतारम्) यज्ञ करानेवाले (पूर्व्यम्) अतएव प्रथम आगमनयोग्य (अग्निम्) युद्धविद्याकुशल विद्वान् को (हुवे) आह्वान करते हैं (तम्) उसको (अया, वाचा) इस वाणी से (गृणे) उच्चारण करते हैं (तम्, उ) उसी को (वः) तुम्हारे यज्ञ की सिद्धि के लिये (स्तुषे) अनुकूल करते हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे याज्ञिकजनो ! आप लोग युद्धविद्याविशारद विद्वान् को आह्वान कर यज्ञ का आरम्भ करते हैं अर्थात् आप लोग केवल आधिभौतिक हवन ही नहीं करते, किन्तु आधिदैविक तथा आध्यात्मिक यज्ञ भी करते हैं, या यों कहो कि प्रजाजनों में से आध्यात्मिक, आधिभौतिक तथा आधिदैविक इन तीनों तापों को मिटाकर अत्यन्त पुरुषार्थरूप अमृत की वृष्टि करते हैं और यज्ञ करने का फल भी यही है, अतएव वेदानुयायी पुरुषों को चाहिये कि उक्त यज्ञों का अनुष्ठान करते हुए स्वयं सुखी हों और प्रजाजनों पर सुख की वृष्टि करें ॥७॥
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शिव शंकर शर्मा

अग्निः प्रार्थनीय इति दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! अहमुपासकः। वः=युष्माकं कल्याणाय। पूर्व्यम्=पुरातनम्। चर्षणीनाम्=प्रजानाम्। होतारम्। अग्निम्। हुवे=आह्वयामि=स्तौमि। पुनः। वः=युष्माकम् मङ्गलाय। अया=अनया वाचा। तमग्निम्। गृणे=शंसामि। तमु=तमेव। स्तुषे=स्तौमि ॥७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे याज्ञिकाः ! (वः) युष्माकम् (चर्षणीनाम्) मनुष्याणाम् (होतारम्) याजकम् (पूर्व्यम्) पूर्वागमनार्हम् (अग्निम्) युद्धकुशलम् (हुवे) आह्वयामि (तम्, अया, वाचा, गृणे) तमेव अनया वाचा शब्दाये (तम्, उ) तमेव (वः) युष्माकं यज्ञरक्षणाय (स्तुषे) स्तुमः ॥७॥