पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे संग्रामवेत्ता विद्वान् ! आप (यथा) जो (हव्यवाहनः, दूतः, बभूथ) प्रजाओं से राजभाग आहरण करने के लिये सम्राट् के दूत सदृश हैं, इसलिये (सुशस्तिभिः) शोभन प्रार्थनाओं से (हव्या, जुह्वानः) प्रजाओं को हव्यपदार्थ प्रदान करते हुए (आनुषक्, याहि) सबकी रक्षा करते हुए भ्रमण करें ॥६॥
भावार्थभाषाः - भाव यह है कि संग्रामवेत्ता विद्वान् सम्राट् के दूतसदृश होते हैं, जो प्रजाओं से राजभाग लेते हैं, या यों कहो कि जिस प्रकार शिक्षा, कल्प तथा व्याकरणादि वेद के अङ्ग हैं, इसी प्रकार परा अपरा विद्यावेत्ता विद्वान् सम्राट् के अङ्ग कहलाते हैं, इसलिये सम्राट् को उचित है कि उक्त विद्वान् उत्पन्न करके सुरीति तथा सुनीति का प्रचार करे, ताकि प्रजा में सुव्यवस्था उत्पन्न होकर प्रजागण सदैव धर्मपरायण हों और वे विद्वान् सब प्रजाओं की रक्षा करते हुए राजभाग को ग्रहण करें ॥६॥