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उद॑स्य शो॒चिर॑स्थाद्दीदि॒युषो॒ व्य१॒॑जर॑म् । तपु॑र्जम्भस्य सु॒द्युतो॑ गण॒श्रिय॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ud asya śocir asthād dīdiyuṣo vy ajaram | tapurjambhasya sudyuto gaṇaśriyaḥ ||

पद पाठ

उत् । अ॒स्य॒ । शो॒चिः । अ॒स्था॒त् । दी॒दि॒युषः॑ । वि । अ॒जर॑म् । तपुः॑ऽजम्भस्य । सु॒ऽद्युतः॑ । ग॒ण॒ऽश्रियः॑ ॥ ८.२३.४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:23» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:9» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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शिव शंकर शर्मा

उसकी महिमा दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) इस परमात्मा का (शोचिः) तेज (उद्+अस्थात्) सर्वत्र उदित और भासित है, जो तेज (अजरम्) जरारहित अर्थात् सर्वदा एकरस रहता है। जो ईश्वर (दीदियुषः) जगद्दीपक (तपुर्जम्भस्य) दुष्ट संहार के लिये जिसके दाँत जाज्वल्यमान हैं, (सुद्युतः) जिसकी कीर्ति शोभायमान है, (गणश्रियः) जो सब गणों का शोभाप्रद है ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यों ! जिस कारण ईश्वर सर्वत्र विद्यमान है, अतः उससे डरकर शुभकर्म में सदा प्रवृत्त रहो ॥४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (दीदियुषः) दीप्यमान (तपुर्जम्भस्य) तीक्ष्णशरीरव्यापार करनेवाले (सुद्युतः) सुन्दर कान्तिवाले (गणश्रियः) वीरगणों का आश्रयण करनेवाले (अस्य) इस विद्वान् का (व्यजरम्) नित्य नूतन (शोचिः) तेज (उदस्थात्) उन्नत ही रहता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो प्रजाजन उक्त गुणसम्पन्न योद्धाओं का सत्कार करते हैं, या यों कहो कि देश में वीरपूजा का प्रचार करते हैं, उनके तेजोमय सूर्य्य का कदापि अस्त नहीं होता, किन्तु प्रतिदिन और प्रतिक्षण उनके तेज का प्रभामण्डल सदैव बढ़ता रहता है ॥४॥
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शिव शंकर शर्मा

तस्य महिमानं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - दीदियुषः=जगद्दीपकस्य। तपुर्जम्भस्य=तापयितृदन्तस्य। सुद्युतः=शोभनदीप्तेः। गणश्रियः=गणानां शोभाप्रदस्य। अस्येशस्य। अजरम्=नित्यम्। शोचिः=तेजः। उद्+अस्थात्=सर्वत्रोदितमस्ति ॥४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (दीदियुषः) दीप्यमानस्य (तपुर्जम्भस्य) तीक्ष्णशरीरव्यापारस्य (सुद्युतः) शोभनकान्तेः (गणश्रियः) गणं श्रयमाणस्य (अस्य) अन्य वीरस्य (व्यजरम्) नित्यनूतनम् (शोचिः) तेजः (उदस्थात्) उन्नतमस्ति ॥४॥