त्वं व॑रो सु॒षाम्णेऽग्ने॒ जना॑य चोदय । सदा॑ वसो रा॒तिं य॑विष्ठ॒ शश्व॑ते ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
tvaṁ varo suṣāmṇe gne janāya codaya | sadā vaso rātiṁ yaviṣṭha śaśvate ||
पद पाठ
त्वम् । व॒रो॒ इति॑ । सु॒ऽषाम्णे॑ । अग्ने॑ । जना॑य । चो॒द॒य॒ । सदा॑ । व॒सो॒ इति॑ । रा॒तिम् । य॒वि॒ष्ठ॒ । शश्व॑ते ॥ ८.२३.२८
ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:23» मन्त्र:28
| अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:14» मन्त्र:3
| मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:28
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शिव शंकर शर्मा
इस ऋचा से प्रार्थना करते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (वरो) हे वरणीय (वसो) हे वासक ! (यविष्ठ) हे युवतम अतिशयमिश्रणकारी (अग्ने) हे सर्वाधार जगदीश ! (त्वम्) तू (सुसाम्ने) तेरी कीर्ति का सुन्दर गान करनेवाले (शश्वते) सब जनों को (रातिम्+चोदय) दान पहुँचाया कर ॥२८॥
भावार्थभाषाः - जौ वैदिक गान में और शुभकर्म में निपुण हों, उन्हें प्रजागण सदा भरण और पोषण करें और वे भी उद्योगी होकर प्रजाओं में अपनी विद्या प्रकाशित किया करें ॥२८॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (वरः) हे वरणीय (वसो) बलद्वारा शत्रुओं का आच्छादन करनेवाले (यविष्ठ) युवावस्थावाले (अग्ने) शूरवीर ! (त्वम्) आप (सुषाम्णे) सुन्दर सामगुणवाले (शश्वते, जनाय) सब प्रजाजनों के लिये (सदा) सर्वदा ही (रातिम्) धनादि अभिलषित पदार्थों की (चोदय) प्रेरणा करें ॥२८॥
भावार्थभाषाः - भाव यह है कि वे युवा शूरवीर, जो अपने पराक्रम द्वारा शत्रुओं पर विजय प्राप्त करनेवाले, सौम्यगुणवाले तथा प्रजाजनों के हितकारक हैं, वे यज्ञों में सम्मिलित होकर जनता को युद्धविद्या की ओर प्रेरित करें, ताकि उनसे राक्षसदल सदा भयभीत रहे ॥२८॥
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शिव शंकर शर्मा
अनया प्रार्थयते।
पदार्थान्वयभाषाः - हे वरो=वरणीय ! हे वसो=वासक ! हे यविष्ठ=युवतम=अतिशयमिश्रणकारिन् हे अग्ने ! त्वम्। सुसाम्ने=शोभनसामवते=सुगानवते। शश्वते=बहवे जनाय। रातिम्=दानम्। सदा। चोदय=प्रेरय ॥२८॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (वरः) हे वरणीय (वसो) आच्छादयितः (यविष्ठ) अतिशयेन युवन् (अग्ने) शूरपते ! (त्वम्) त्वम् (सुषाम्णे) सुष्ठु सामवते (शश्वते, जनाय) सर्वस्मै जनाय (सदा) शश्वत् (रातिम्) धनम् (चोदय) प्रेरय ॥२८॥