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व॒यमु॒ त्वाम॑पूर्व्य स्थू॒रं न कच्चि॒द्भर॑न्तोऽव॒स्यव॑: । वाजे॑ चि॒त्रं ह॑वामहे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vayam u tvām apūrvya sthūraṁ na kac cid bharanto vasyavaḥ | vāje citraṁ havāmahe ||

पद पाठ

व॒यम् । ऊँ॒ इति॑ । त्वाम् । अ॒पू॒र्व्य॒ । स्थू॒रम् । न । कत् । चि॒त् । भर॑न्तः । अ॒व॒स्यवः॑ । वाजे॑ । चि॒त्रम् । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥ ८.२१.१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:21» मन्त्र:1 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:1» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:1


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शिव शंकर शर्मा

पुनः परमदेव की स्तुति आरम्भ करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अपूर्व्य) हे अपूर्व, हे असदृश ! (त्वाम्+उ) तुझको ही (वयम्) हम सब मिलकर (हवामहे) पुकारते हैं, जो तू (वाजे) विज्ञान के निमित्त (चित्रम्) आश्चर्य है और हम सब (कच्चित्) कुछ भी (स्थूरम्) दृढ़ वस्तु को (न+भरन्तः) रखनेवाले नहीं है, किन्तु (अवस्यवः) आपसे रक्षा चाहते हैं ॥१॥
भावार्थभाषाः - अपूर्व्य=जिसके पहिले कोई न हो “यस्मात् पूर्वो न कश्चित् सोऽपूर्वः” यद्वा=जिसके सदृश कोई नहीं, वह अपूर्व। वेद में अपूर्व्य होता है। वाज=यह अनेकार्थक शब्द है। ज्ञान, अन्न, युद्ध, गमन आदि इसके अर्थ होते हैं ॥१॥
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आर्यमुनि

अब इस सूक्त में उन योद्धाओं के स्वामी का माहात्म्य वर्णन करते हुए उसकी सत्क्रिया करना कथन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अपूर्व्य) हे प्रथम ग्राह्य प्रधान सेनापते ! (न) जिस प्रकार (भरन्तः) भारको ढोने में असमर्थ शक्तिहीन पुरुष भार ढोते हुए (कच्चित्, स्थूरम्) किसी बलवान् दृढ़ पुरुष को बुलाते हैं, वैसे ही महान् कर्म में प्रवृत्त स्वयं रक्षा करने में असमर्थ (अवस्यवः, वयम्) रक्षा चाहनेवाले हमलोग (वाजे, चित्रम्) संग्राम में विविधरूप धारण करनेवाली (त्वाम्, उ) आप ही को (हवामहे) आह्वान करते हैं ॥१॥
भावार्थभाषाः - जिस प्रकार कोई भारवाही मनुष्य असमर्थ होकर सहायता के लिये अपने से अधिक शक्तिमान् का आश्रय लेकर ही कार्य सिद्ध कर सकते हैं, इसी प्रकार प्रजाजन भी प्रधान सेनापति का आश्रय लेकर ही बड़े-बड़े उद्देश्यों को सिद्ध कर सकते हैं, क्योंकि हर प्रकार के विघ्नों को नष्ट करने में सेनापति ही समर्थ होता है, अतएव उचित है कि सब प्रजाजन सेनापति का सत्कार करते हुए अपने कार्य्य सिद्ध करने में समर्थ हों ॥१॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनः परमदेवस्तुतिमारभते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अपूर्व्य=हे अपूर्व, हे असदृश। त्वामु=त्वामेव। वयम्। हवामहे। कीदृशम्। वाजे=विज्ञाने। चित्रमाश्चर्य्यमद्भुतम्। वयं कीदृशाः। कञ्चित्=किमपि। स्थूरम्=स्थूलं दृढं वस्तु। न+भरन्तः=न+धारयन्तः। पुनः। अवस्यवः=रक्षाकामाः ॥१॥
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आर्यमुनि

सम्प्रति योद्धृस्वामिनः माहात्म्यवर्णनपूर्वकसत्क्रिया वर्ण्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (अपूर्व्य) हे प्रधानसेनापते ! (न) यथा (भरन्तः) बलहीना भारं धारयन्तः (कच्चित्, स्थूरम्) कंचित् बलपूर्णं पुरुषमाह्वयन्ति तथावत् (अवस्यवः) स्वयं रक्षितुमसमर्था रक्षामिच्छन्तः (वयम्) वयं प्राकृताः (वाजे, चित्रम्) संग्रामे विविधरूपं (त्वाम्, उ) त्वामेव (हवामहे) आह्वयामः ॥१॥