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येन॒ चष्टे॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा येन॒ नास॑त्या॒ भग॑: । व॒यं तत्ते॒ शव॑सा गातु॒वित्त॑मा॒ इन्द्र॑त्वोता विधेमहि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yena caṣṭe varuṇo mitro aryamā yena nāsatyā bhagaḥ | vayaṁ tat te śavasā gātuvittamā indratvotā vidhemahi ||

पद पाठ

येन॑ । चष्टे॑ । वरु॑णः । मि॒त्रः । अ॒र्य॒मा । येन॑ । नास॑त्या । भगः॑ । व॒यम् । तत् । ते॒ । शव॑सा । गा॒तु॒वित्ऽत॑माः । इन्द्र॑त्वाऽऊताः । वि॒धे॒म॒हि॒ ॥ ८.१९.१६

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:19» मन्त्र:16 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:32» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:16


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शिव शंकर शर्मा

पुनः प्रार्थना का विधान करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमदेव ! (वरुणः) राजप्रतिनिधि (मित्रः) ब्राह्मणप्रतिनिधि (अर्यमा) वैश्यप्रतिनिधि (नासत्या) असत्यरहित वैद्यप्रतिनिधि (भगः) और भजनीय सर्वप्रतिनिधि (येन) जिस ज्ञान से (चष्टे) सत्यासत्य और कर्त्तव्याकर्त्तव्य देखते और उनका व्याख्यान करते हैं, (तत्) उस (ते) तेरे दिये ज्ञान को (वयम्) हम भी (विधेमहि) कार्यों में लगा सकें, ऐसी शक्ति दे, जो हम लोग (शवसा) बलपूर्वक (गातुवित्तमाः) अच्छे प्रकार स्तोत्रों के जाननेवाले और (इन्द्रत्वोताः) तुझसे ही सुरक्षित हैं ॥१६॥
भावार्थभाषाः - ऐसी-२ ऋचा द्वारा एक यह विषय विस्पष्टता से दिखलाया जाता है कि प्रार्थयिता नर योग्य हैं या नहीं। अतः प्रथम स्वयं प्रार्थना के योग्य बनें, तब उसके निकट याचना करें, तब ही उसकी पूर्त्ति हो सकती है ॥१६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (येन) जिस आपके तेज से (वरुणः) विघ्नों का वारक अथवा भजनीय नेता (मित्रः) सबका हितकारक (अर्यमा) परमात्मज्ञानप्रकाशक विद्वान् (चष्टे) प्रकाश को पाता है (येन) जिससे (नासत्या) सत्यज्ञानवाला, सत्यकर्मवाला तथा (भगः) भजनीय सदाचारी विद्वान् प्रकाशित होता है (शवसा) बल से (गातुवित्तमाः) कीर्तनीय पदार्थ को अतिशय लाभ करनेवाले (इन्द्रत्वोताः) आपसे रक्षित होकर (वयम्) हम सब (तत्, ते) उस आपके तेज का (विधेमहि) सेवन करें ॥१६॥
भावार्थभाषाः - अनेक प्रकार के उच्चपदवाले नेतागणों के आचरण तथा यश को –देख-सुनकर उपासक वैसे ही आचरणों को करता हुआ पवित्र यश की प्रार्थना करे अर्थात् सत्यज्ञानवाला, सत्यकर्मवाला, सदाचारी तथा परमात्मा का उपासक विद्वान् जिन-२ कर्मों का अनुष्ठान करता है, उन्हीं कर्मों का आचरण करता हुआ यशस्वी, तेजस्वी, प्रतापी और दीर्घ जीवनवाला होता है ॥१६॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनः प्रार्थनां विदधाति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमदेव ! वरुणः=राजप्रतिनिधिः। मित्रः=ब्राह्मणप्रतिनिधिः। अर्य्यमा=वैश्यप्रतिनिधिः। नासत्या=असत्यरहितौ वैद्यौ। भगः=भजनीयो जनः। येन=ज्ञानेन। चष्टे=सत्यासत्ये कर्त्तव्याकर्त्तव्ये पश्यति व्याचष्टे च। तत्ते=तव प्रदत्तं ज्ञानम्। वयमपि। विधेमहि=कार्य्येषु आनयेमहि। तादृशीं शक्तिं देहि। कीदृशा वयम्। शवसा=बलेन। गातुवित्तमा=गातोर्गातव्यस्य स्तोत्रस्य ज्ञातृतमाः। पुनः। इन्द्रत्वोताः=त्वया इन्द्रेण ऊताः=रक्षिताः ॥१६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (येन) येन तव तेजसा (वरुणः) विघ्नानां वारयिता भजनीयो वा नेता (मित्रः) सर्वेषां हितः (अर्यमा) परमात्मज्ञानवान् (चष्टे) प्रकाशते (येन) येन च (नासत्या) सत्यज्ञानः सत्यकर्मा च (भगः) भजनीयः सदाचरणशीलो विद्वान् प्रकाशते (शवसा) बलेन (गातुवित्तमाः) गातव्यस्य कीर्तियुक्तस्य लब्धृतमाः (इन्द्रत्वोताः) इन्द्रेण रक्षिताः सन्तः (वयम्) वयं सर्वे (तत्, ते) तत् तेजः (विधेमहि) सेवेमहि ॥१६॥