वांछित मन्त्र चुनें

यस्या॒ग्निर्वपु॑र्गृ॒हे स्तोमं॒ चनो॒ दधी॑त वि॒श्ववा॑र्यः । ह॒व्या वा॒ वेवि॑ष॒द्विष॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yasyāgnir vapur gṛhe stomaṁ cano dadhīta viśvavāryaḥ | havyā vā veviṣad viṣaḥ ||

पद पाठ

यस्य॑ । अ॒ग्निः । वपुः॑ । गृ॒हे । स्तोम॑म् । चनः॑ । दधी॑त । वि॒श्वऽवा॑र्यः । ह॒व्या । वा॒ । वेवि॑षत् । विषः॑ ॥ ८.१९.११

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:19» मन्त्र:11 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:31» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:11


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

परमात्मा की स्तुति कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) जिस यजमान के (गृहे) गृह में (विश्ववार्य्यः) सबसे स्वीकार योग्य (अग्निः) सर्वव्यापी ईश (वपुः) नानारूपवाले (स्तोमम्) स्तोत्र को तथा (चनः) विविध प्रकार के अन्नों को (दधीत) पुष्ट करता है (वा) और जो यजमान (हव्या) भोज्य पदार्थ (विषः) विद्वानों को (वेविषद्) खिलाता है, वह सब कार्य सिद्ध करता है। यह पूर्व से सम्बन्ध रखता है ॥११॥
भावार्थभाषाः - धन्य वे मनुष्य हैं, जिनके गृह अग्निहोत्रादि कर्मों और उपासनाओं से भूषित हैं ॥११॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निः) परमात्मा (यस्य, गृहे) जिस उपासक के घर में (वपुः) रूप (स्तोमम्) स्तोत्र (चनः) और अन्नादि को (दधीत) धारण करे (वा) अथवा (विश्ववार्यः) सबका भजनीय परमात्मा (विषः) देवों के प्रति (हव्या, वेविषत्) हव्य पदार्थों को प्राप्त कराये, वह पूर्वोक्त फल को पाता है ॥११॥
भावार्थभाषाः - वह परमात्मा अपने उपासक को शुभकर्म में श्रद्धा उत्पन्न करके पुनः सन्मार्गगामी बनाता है, जिससे वह सर्वदा विविध देवों=विद्वानों की उपासना द्वारा शाश्वत सुख भोगता है अर्थात् वह उपासक विद्वानों की सेवा द्वारा उनसे अपूर्व ज्ञान प्राप्त करके यज्ञादि कर्मों द्वारा सब प्रकार का ऐश्वर्य्य प्राप्त करता है ॥११॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

परमात्मस्तुतिः कथ्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - यस्योपासकस्य। गृहे=भवने। विश्ववार्य्यः=विश्वैः=सर्वैः। वार्य्यः=वरणीयः=स्वीकरणीयः। अग्निः=सर्वगः परमात्मा। वपुः=नानारूपविभूषितम्। वपुरिति रूपनाम। निस्तोमम्। स्तोत्रम्। चनोऽन्नञ्च। दधीत=पुष्यते। वा=चार्थः। पुनः। यो यजमानः। हव्या=हव्यानि भोज्यानि अन्नानि। विषः=विदुषः। अत्र दुरित्यस्य छान्दसो लोपः। यद्वा। व्याप्तान् प्रसिद्धान्। वेविषद्=प्रापयति भोजयति। स सर्वं साधयतीति पूर्वेण संबन्धः। विष्लृ व्याप्तौ ॥११॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निः) परमात्मा (यस्य, गृहे) यस्योपासकस्य गृहे (वपुः) रूपम् (स्तोमम्) स्तोत्रम् (चनः) अन्नं च (दधीत) धारयेत् (वा) अथवा (विश्ववार्यः) विश्वैः वरणीयः सः (विषः) देवान् प्रति (हव्या, वेविषत्) हव्यपदार्थान् प्रापयेत् स पूर्वोक्तं लभेत ॥११॥