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तम॒र्केभि॒स्तं साम॑भि॒स्तं गा॑य॒त्रैश्च॑र्ष॒णय॑: । इन्द्रं॑ वर्धन्ति क्षि॒तय॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tam arkebhis taṁ sāmabhis taṁ gāyatraiś carṣaṇayaḥ | indraṁ vardhanti kṣitayaḥ ||

पद पाठ

तम् । अ॒र्केभिः॑ । तम् । साम॑ऽभिः । तम् । गा॒य॒त्रैः । च॒र्ष॒णयः॑ । इन्द्र॑म् । व॒र्ध॒न्ति॒ । क्षि॒तयः॑ ॥ ८.१६.९

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:16» मन्त्र:9 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:21» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:9


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शिव शंकर शर्मा

इन्द्र के गुण दिखलाये जाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यों ! (चर्षणयः) तत्त्वज्ञ होतृरूप मानव (अर्कैः) अर्चनीय मन्त्रों से (तम्) उसी परमप्रसिद्ध इन्द्र को (वर्धन्ति) बढ़ाते हैं अर्थात् उसके विविध गुणों को गाते हैं। (सामभिः) उद्गातृरूप मनुष्य सामगानों से (तम्) उसी को बढ़ाते हैं (तम्) उसी को (गायत्रैः) गायत्री आदि छन्दों से बढ़ाते हैं (क्षितयः) विज्ञानाधार पर निवासकर्ता मनुष्य विविध प्रकार से (इन्द्रम्) इन्द्र की ही स्तुति प्रार्थना करते हैं ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे विवेकी जनों ! जहाँ देखो, क्या यज्ञों में, क्या अन्यत्र, सर्वत्र ही बुद्धिमान् जन भी उसी का यशोगान करते हैं। आप भी उसी को गाओ, यह शिक्षा इससे देते हैं ॥९॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (चर्षणयः, क्षितयः) उसके द्रष्टा विद्वान् (तम्, इन्द्रम्) उस परमात्मा को (अर्केभिः) यजुर्मन्त्रों से (तम्, सामभिः) उसी को साम से (तम्, गायत्रैः) उसी को गायत्र्यादि सहित ऋचाओं से (वर्धन्ति) प्रकाशित करते हैं ॥९॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा के द्रष्टा योगीजन, जिन्होंने उसके स्वरूप को भले प्रकार जाना है, वे उसको यजुरादि चारों वेदों से प्रकाशित करते हैं, क्योंकि परमात्मा का पूर्ण ज्ञान वेदों द्वारा ही हो सकता है। वेद परमात्मा की वाणी होने से उनमें वर्णित परमात्मा का स्वरूपज्ञान तथा उसकी महिमा का मान भले प्रकार होता है, अन्यथा नहीं, अतएव प्रत्येक पुरुष वेदों के अध्ययन द्वारा उसका स्वरूपज्ञान प्राप्त करने के लिये प्रयत्न करे ॥९॥
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शिव शंकर शर्मा

इन्द्रगुणाः प्रदर्श्यन्ते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! चर्षणयस्तत्त्वज्ञा होतारो मानवाः तमेवेन्द्रम्। अर्कैरर्चनीयैर्मन्त्रैः। वर्धन्ति=वर्धयन्ति। तस्य विविधान् गुणान् गायन्तीत्यर्थः। तमेव सामगाः। सामभिः=सामवेदैर्गानात्मकैः। वर्धन्ति। पुनः। क्षितयः=विज्ञानाधारेषु निवसन्तो मनुष्याः। तमेवेन्द्रम्। गायत्रैः=गायत्रीप्रभृतिभिः छन्दोभिः। वर्धन्ति। ईदृश इन्द्र एव पूज्योऽस्तीति शिक्षते ॥९॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (चर्षणयः, क्षितयः) तद्द्रष्टारो जनाः (तम्, इन्द्रम्) तं परमात्मानम् (अर्केभिः) अर्चनैर्यजुर्भिः (तम्, सामभिः) तमेव सामभिः (तम्, गायत्रैः) तमेव गायत्र्याद्युपेताभिर्ऋग्भिः (वर्धन्ति) प्रकाशयन्ति ॥९॥