वांछित मन्त्र चुनें

अ॒भि स्व॑रन्तु॒ ये तव॑ रु॒द्रास॑: सक्षत॒ श्रिय॑म् । उ॒तो म॒रुत्व॑ती॒र्विशो॑ अ॒भि प्रय॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhi svarantu ye tava rudrāsaḥ sakṣata śriyam | uto marutvatīr viśo abhi prayaḥ ||

पद पाठ

अ॒भि । स्व॒र॒न्तु॒ । ये । तव॑ । रु॒द्रासः॑ । स॒क्ष॒त॒ । श्रिय॑म् । उ॒तो इति॑ । म॒रुत्व॑तीः । विशः॑ । अ॒भि । प्रयः॑ ॥ ८.१३.२८

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:13» मन्त्र:28 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:12» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:28


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

इससे ईश्वर की प्रार्थना करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! (तव) तेरे (ये) जो (रुद्राः) भक्तगण हैं, वे (अभिस्वरन्तु) हमारे यज्ञ में आवें और आकर (श्रियम्) यज्ञ की शोभा को (सक्षत) बढ़ावें (उत) और (मरुत्वतीः) कई आदमी मिलकर कार्य करनेवाली सार्थसम्बन्धी (विशः) प्रजाएँ अर्थात् व्यापार करनेवाली जातियाँ भी (प्रयः) विविध अन्न को लेकर हमारे यज्ञ में (अभिस्वरन्तु) आवें ॥२८॥
भावार्थभाषाः - हे ईश तेरी कृपा से संसार की शोभा बढ़े और अन्नों से लोग पुष्ट रहें ॥२८॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

अब क्षात्रधर्म की रक्षार्थ परमात्मा से प्रार्थना करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (ये, तव, रुद्रासः) जो आपके बलप्राप्त योद्धा लोग हैं, वे (अभिस्वरन्तु) अभिव्याप्त हों (श्रियम्) सम्पत्ति को (सक्षत) लब्ध करें (उतो) और (मरुत्वतीः, विशः) सैनिकयुक्त प्रजाएँ (प्रयः) भोग्य पदार्थों को (अभि) भले प्रकार प्राप्त करें ॥२८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में क्षात्रबल के लिये परमात्मा से प्रार्थना की गई है कि हे प्रभो ! आप क्षात्रबल को उन्नत करें, जिससे सब धर्म सुरक्षित रहें। हे परमात्मन् ! योद्धा लोग सर्वत्र व्याप्त हों, ताकि सब ओर से हमारी रक्षा रहे, आप योद्धा लोगों को सम्पत्तिशाली करें, ताकि वह उत्साहपूर्वक दुष्टों के दलन करने में वीरता दिखाएँ और अन्य सैनिकजनों के लिये भी सदैव अन्नादि भोग्य पदार्थ देकर उन्हें सन्तुष्ट करें, ताकि उनमें क्षात्रबल पूर्ण होने से सब प्रजा सुरक्षित रहे ॥२८॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

ईश्वरप्रार्थनां करोति ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! तव। ये रुद्राः=समस्तदुःखविनाशका भक्ताः सन्ति। “रुद् दुःखं द्रावयन्तीति रुद्राः, परेषां क्लेशान् दृष्ट्वा ये स्वयं रुदन्ति वा ते रुद्राः, परदुःखं श्रुत्वा रुदन्तो ये द्रवन्ति गच्छन्ति तत्र-२ दुःखनिवारणाय ते रुद्राः”। ते। अस्माकं यज्ञम्। अभिस्वरन्तु=आगच्छन्तु। श्रियम्=शोभाम्। सक्षत=सञ्जन्तु= प्राप्नुवन्तु। उत=अपि च। मरुत्वतीर्विशः=वैश्याः। गणशो गणशो ये संगत्य कार्य्यं साधयन्ति ते मरुतः। तत्सम्बन्धिन्यो मरुत्वत्यो विशो व्यापारे नियुक्ताः प्रजा अपि। प्रयोऽन्नम्। नीत्वा। अभिस्वरन्तु ॥२८॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

अथ क्षात्रधर्मरक्षणाय परमात्मा प्रार्थ्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (ये, तव, रुद्रासः) ये तव बलप्राप्ताः योद्धारः ते (अभिस्वरन्तु) अभ्यागच्छन्तु (श्रियम्) सम्पत्तिम् (सक्षत) लभन्ताम् (उतो) अथ (मरुत्वतीः, विशः) सैनिकयुक्तप्रजाः (प्रयः) भोग्यपदार्थान् (अभि) अभ्यागच्छन्तु ॥२८॥