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तमी॑महे पुरुष्टु॒तं य॒ह्वं प्र॒त्नाभि॑रू॒तिभि॑: । नि ब॒र्हिषि॑ प्रि॒ये स॑द॒दध॑ द्वि॒ता ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tam īmahe puruṣṭutaṁ yahvam pratnābhir ūtibhiḥ | ni barhiṣi priye sadad adha dvitā ||

पद पाठ

तम् । ई॒म॒हे॒ । पु॒रु॒ऽस्तु॒तम् । य॒ह्वम् । प्र॒त्नाभिः॑ । ऊ॒तिऽभिः॑ । नि । ब॒र्हिषि॑ । प्रि॒ये । स॒द॒त् । अध॑ । द्वि॒ता ॥ ८.१३.२४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:13» मन्त्र:24 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:11» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:24


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शिव शंकर शर्मा

प्रार्थना दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्+ईमहे) उस परमात्मा से हम लोग याचना और प्रार्थना करते हैं (पुरुस्तुतम्) जिसकी सब स्तुति करते हैं और (यह्वम्) जो महान् है (प्रत्नाभिः+ऊतिभिः) शाश्वत=चिरस्थायी सहायता के लिये जो (प्रिये+बर्हिषि) प्रियसंसाररूप आसन पर (निसदत्) बैठा हुआ है और जो (द्विता) अनुग्रह और निग्रह दोनों कार्य करनेवाला है, उसको हम याचते=माँगते हैं ॥२४॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा ही प्रार्थनीय और याचनीय है। वही सर्वत्र व्यापक होने से हमारी स्तुति सुनता और अभीष्ट को जानता है ॥२४॥
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आर्यमुनि

अब बुद्धिवृद्धि के लिये परमात्मा से याचना करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुष्टुतम्) अनेक विद्वानों से स्तुत (यह्वम्, तम्) उस महान् परमात्मा की (प्रत्नाभिः, ऊतिभिः) प्राचीन वेदवाणियों से (ईमहे) प्रार्थना करते हैं कि (प्रिये, बर्हिषि) वह प्रिय हृदयरूप आसन में (निषदत्) आसीन होकर (अध, द्विता) सदसद्विवेक करनेवाली बुद्धि दे ॥२४॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों द्वारा सदा स्तुत परमात्मन् ! हम लोग वेदवाणियों द्वारा सदैव आपकी स्तुति तथा प्रार्थना करते हैं। कृपा करके हमारे हृदय में विराजमान होकर हमें सदसद्विवेचन करनेवाली बुद्धि दीजिये, जिससे हम संसार के पदार्थों को यथावस्थित जानकर उनसे उपयोग लें और उसी सूक्ष्म बुद्धि से आपके समीपवर्ती होकर सुख अनुभव करें ॥२४॥
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शिव शंकर शर्मा

प्रार्थनां दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - पुरुस्तुतम्=पुरुभिर्बहुभिर्विद्वद्भिः। स्तुतम्=गीतयशसम्=यह्वम्= महान्तम्। तमीश्वरमिन्द्रवाच्यम्। प्रत्नाभिः=प्राचीनाभिः शाश्वतीभिः। ऊतिभी रक्षाभिर्हेतुभिः। ईमहे=याचामहे। प्रिये=रमणीये। बर्हिषि=स्थावरे जङ्गमे च संसारे निसदत्। यो द्विता=अनुग्रहनिग्रहकर्त्ताऽस्ति। तमीमह इत्यन्वयः ॥२४॥
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आर्यमुनि

अथ बुद्धिवृद्ध्यै परमात्मा याच्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुष्टुतम्) बहुभिः स्तुतम् (यह्वम्, तम्) महान्तं तम् (प्रत्नाभिः, ऊतिभिः) पुरातनीभिः वेदवाग्भिः (ईमहे) प्रार्थयामहे (प्रिये, बर्हिषि) प्रेमाश्रये हृद्रूपे आसने (निषदत्) निषीदतु (अध, द्विता) अथ सदसद्विवेचनीं बुद्धिं च वर्द्धयतु ॥२४॥