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उ॒त ते॒ सुष्टु॑ता॒ हरी॒ वृष॑णा वहतो॒ रथ॑म् । अ॒जु॒र्यस्य॑ म॒दिन्त॑मं॒ यमीम॑हे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta te suṣṭutā harī vṛṣaṇā vahato ratham | ajuryasya madintamaṁ yam īmahe ||

पद पाठ

उ॒त । ते॒ । सुऽस्तु॑ता । हरी॒ इति॑ । वृष॑णा । व॒ह॒तः॒ । रथ॑म् । अ॒जु॒र्यस्य॑ । म॒दिन्ऽत॑मम् । यम् । ईम॑हे ॥ ८.१३.२३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:13» मन्त्र:23 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:11» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:23


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शिव शंकर शर्मा

उसका महत्त्व दिखलाया जाता है।

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) और (ते) तुझसे उत्पादित (सुष्टुता) सर्वथा प्रशंसित (वृषणा) निखिल कामनाओं को वर्षानेवाले (हरी) परस्पर हरणशील स्थावर-जङ्गमात्मक दो घोड़े (अजुर्यस्य) जरामरणादि दुःखरहित तेरे (रथम्) रमणीय रथ को (वहतः) प्रकाशित कर रहे हैं। अर्थात् मानो यह संसार तुझे रथ के ऊपर बैठाकर हम जीवों के समीप दिखला रहा है। (मदिन्तमम्) अतिशय आनन्दयिता (यम्) जिस तुझसे (ईमहे) हम धनादिक वस्तु याचते हैं ॥२३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यों ! ये स्थावर और जङ्गम संसार परमात्मा को दिखला रहे हैं, अतः वे दोनों अच्छे प्रकार ज्ञातव्य हैं ॥२३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अजुः, यस्य) जिस अजर आपके (यम्, मदिन्तमम्) जिस अत्यन्त सुखकर ज्ञान को (ईमहे) हम लोग याचना करते हैं (उत) जब (रथम्) उस ज्ञान के आधार को (ते) आपकी (सुष्टुता) सुन्दर प्रशंसनीय (वृषणा) कामनाप्रद (हरी) शक्तिएँ (वहतः) समीप में ले आएँ तब, “यह पूर्व प्रश्न का उत्तर” है ॥२३॥
भावार्थभाषाः - यह मन्त्र पूर्व मन्त्र में जो धन ऐश्वर्य्यादिविषयक प्रश्न किये हैं, उनके उत्तर को कहता है अर्थात् जो मनुष्य जो अश्व धन आदि पदार्थों को प्राप्त करना चाहे, उसके लिये एकमात्र यही उपाय है कि वह अपने ज्ञान को ईश्वर की प्रार्थना द्वारा तथा उसके कहे हुए विहित आचरणों से बढ़ाकर सामर्थ्य उत्पन्न करे ॥२३॥
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शिव शंकर शर्मा

महिमा प्रदर्श्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - उत=अपि च। ते=तवोत्पादितौ। सुष्टुता=सुष्टुतौ शोभनं स्तुतौ। वृषणा=वृषणौ कामानां वर्षितारौ। हरी=परस्परहरणशीलौ स्थावरजङ्गमात्मकावश्वौ। अजुर्यस्य=जरामरणादिदुःखरहितस्य तव। रथम्=रमणीयं शकटं वहतः। रथे त्वां स्थापयित्वा दर्शयत इत्यर्थः। मदिन्तमम्=अतिशयेनानन्दयितारम्। यम्=त्वाम्। ईमहे=धनादिकं याचामहे वयम् ॥२३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अजुः, यस्य) अजीर्णस्य यस्य भवतः (यम्, मदिन्तमम्) यदत्यन्तसुखकरं ज्ञानम् (ईमहे) वयं याचामहे (उत) अथ (रथम्) तं ज्ञानाधारम् (ते) तव (सुष्टुता) प्रशंसनीये (वृषणा) कामानां वर्षयित्र्यौ (हरीः) शक्ती (वहतः) यदा आगमयतः तदेति पूर्ववाक्योत्तरम् ॥२३॥