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य॒दा ते॑ हर्य॒ता हरी॑ वावृ॒धाते॑ दि॒वेदि॑वे । आदित्ते॒ विश्वा॒ भुव॑नानि येमिरे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yadā te haryatā harī vāvṛdhāte dive-dive | ād it te viśvā bhuvanāni yemire ||

पद पाठ

य॒दा । ते॒ । ह॒र्य॒ता । हरी॒ इति॑ । व॒वृ॒धाते॒ इति॑ । दि॒वेऽदि॑वे । आत् । इत् । ते॒ । विश्वा॑ । भुव॑नानि । ये॒मि॒रे॒ ॥ ८.१२.२८

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:12» मन्त्र:28 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:6» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:28


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शिव शंकर शर्मा

उसका महत्त्व दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! (यदा) जिस काल में (ते) तेरे (हर्य्यता) सर्व कमनीय (हरी) परस्पर हरणशील स्थावर जङ्गमरूप द्विविध संसार (दिवेदिवे) प्रतिदिन=क्रमशः शनैः-२ (वावृधाते) बढ़ते जाते हैं अर्थात् शनैः-२ अपने-२ स्वरूप में विकसित होते जाते हैं (आद्+इत्) तब ही (ते) तुझसे (विश्वा) सम्पूर्ण (भुवनानि) लोक-लोकान्तर और प्राणिजात (येमिरे) नियम में स्थापित किए जाते हैं। ज्यों-ज्यों सृष्टि का विकाश हो जाता है, त्यों-त्यों तू उनको नियम में बाँधता जाता है ॥२८॥
भावार्थभाषाः - ज्यों-२ इसके गूढ़ नियम मालूम होते हैं, त्यों-त्यों उपासक का ईश्वर में विश्वास होता जाता है ॥२८॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यदा) जब (हर्यता) कमनीय (ते) आपकी (हरी) धारणपोषणशक्ति (दिवेदिवे) प्रतिदिन (ववृधाते) प्रवृद्ध रहती हैं (आत्, इत्) इसी से (ते) आपके (विश्वा, भुवनानि) सब लोक (नियेमिरे) नियमित रहते हैं ॥२८॥
भावार्थभाषाः - हे सबकी कामनाओं को पूर्ण करनेवाले परमात्मन् ! आप सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों को धारण किये हुए हैं और प्रतिदिन सबका पालन, पोषण तथा रक्षण करते हैं, इसी से सब लोक-लोकान्तर नियमबद्ध रहते हैं अर्थात् संसार का धारण करना तथा पोषणरूप शक्तियें भी आप ही के अधीन हैं ॥२८॥
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शिव शंकर शर्मा

महत्त्वं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! यदा=यस्मिन् काले। ते=तवौत्पादितौ। हर्यता=सर्वैः कमनीयौ। हरी=हरणशीलौ द्विविधौ संसारौ। दिवेदिवे=दिने दिने=प्रतिदिनम्। वावृधाते=शनैः शनैः वर्धेते विकासेते। आदित्=तदन्तरमेव। ते=त्वया। विश्वा=सर्वाणि। भुवनानि=लोकान् भूतानि च। येमिरे=नियम्यन्ते नियमे स्थाप्यन्ते ॥२८॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यदा) यत्र काले (हर्यता) कमनीये (ते) तव (हरी) धारणपोषणशक्ती (दिवेदिवे) प्रतिदिनं (ववृधाते) वर्धेते (आत्, इत्) अनन्तरम् (ते) तव (विश्वा, भुवनानि) सर्वे लोकाः (नियेमिरे) नियम्यन्ते ॥२८॥