वांछित मन्त्र चुनें

य॒दा ते॒ विष्णु॒रोज॑सा॒ त्रीणि॑ प॒दा वि॑चक्र॒मे । आदित्ते॑ हर्य॒ता हरी॑ ववक्षतुः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yadā te viṣṇur ojasā trīṇi padā vicakrame | ād it te haryatā harī vavakṣatuḥ ||

पद पाठ

य॒दा । ते॒ । विष्णुः॑ । ओज॑सा । त्रीणि॑ । प॒दा । वि॒ऽच॒क्र॒मे । आत् । इत् । ते॒ । ह॒र्य॒ता । हरी॒ इति॑ । व॒व॒क्ष॒तुः॒ ॥ ८.१२.२७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:12» मन्त्र:27 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:6» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:27


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

पुनः उसी अर्थ को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र परमदेव ! (यदा) जिस समय=प्रातःकाल (ते) तुझसे उत्पादित (विष्णुः) व्यापनशील सूर्य (ओजसा) स्वप्रताप के साथ (त्रीणि+पदा) तीन पैर को तीनों लोक में (विचक्रमे) रखता है अर्थात् जब उदय होता है (आद्+इत्) तदन्तर ही (ते) तेरे (हर्य्यता) सर्वकमनीय (हरी) परस्पर हरणशील स्थावर और जङ्गम द्विविध संसार तुझको (ववक्षतुः) प्रकाशित करते हैं अर्थात् इस सृष्टि में तेरी विभूति दीखने लगती है ॥२७॥
भावार्थभाषाः - यह सूर्य्य भी इसके महान् यश को प्रकाशित करता है। इस दिवाकर को देख उसका महत्त्व प्रतीत होता है ॥२७॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (विष्णुः) सूर्य (यदा) जब (ते, ओजसा) आपके पराक्रम से (त्रीणि, पदा) पृथिव्यादि तीनों लोकों में किरणों को (विचक्रमे) फैलाता है (आदित्) तभी (ते) आपकी (हर्यता) कमनीय (हरी) शीतनाशक रसविकर्षकरूप दो शक्तियें (ववक्षतुः) लोक को धारण करती हैं ॥२७॥
भावार्थभाषाः - हे सर्वशक्तिसम्पन्न परमेश्वर ! आपसे प्रेरित हुआ सूर्य्य जब अपनी किरणों को प्रसारित करता है, तभी शीत की निवृत्ति होती और सब पदार्थों में रसों का आधान होता है अर्थात् शीतनाशक तथा रसविकर्षकरूप दो शक्तियें भी आप ही के अधीन हैं ॥२७॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

पुनस्तमर्थमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! यदा=यस्मिन् समये=प्रातःकाले। ते=तवोत्पादितो विष्णुः=सूर्य्यः। ओजसा=प्रतापेन सह। त्रीणि पदा=पदानि। त्रिषु लोकेषु। विचक्रमे=विक्राम्यति=निदधाति। आद्+इत्= तदन्तरमेव। ते=तव सम्बन्धिनौ। हर्य्यता=हर्य्यतौ सर्वैः कमनीयैः। हरी=परस्परहरणस्वभावौ स्थावरजङ्गमौ संसारौ। त्वाम्। ववक्षतुः=वहतः=प्राणिनां सन्निधौ त्वां प्रकाशयतः। तव स्वरूपं प्रकृतौ दृश्यत इत्यर्थः ॥२७॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (विष्णुः) सूर्यः (यदा) यस्मिन् काले (ते, ओजसा) तव बलेन (त्रीणि, पदा) त्रीणि पदानि (विचक्रमे) विक्रामति (आदित्) अनन्तरमेव (ते) तव (हर्यता) कमनीये (हरी) शैत्यनाशनाकर्षणशक्ती (ववक्षतुः) धारयतः ॥२७॥