वांछित मन्त्र चुनें

यत्सोम॑मिन्द्र॒ विष्ण॑वि॒ यद्वा॑ घ त्रि॒त आ॒प्त्ये । यद्वा॑ म॒रुत्सु॒ मन्द॑से॒ समिन्दु॑भिः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yat somam indra viṣṇavi yad vā gha trita āptye | yad vā marutsu mandase sam indubhiḥ ||

पद पाठ

यत् । सोम॑म् । इ॒न्द्र॒ । विष्ण॑वि । यत् । वा॒ । घ॒ । त्रि॒ते । आ॒प्त्ये । यत् । वा॒ । म॒रुत्ऽसु॑ । मन्द॑से । सम् । इन्दु॑ऽभिः ॥ ८.१२.१६

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:12» मन्त्र:16 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:4» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:16


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

उसी का पोषण दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र (विष्णवि) विष्णु=सूर्य्यलोक में (यत्+सोमम्) जिस सोम=वस्तु को तू (मन्दसे) आनन्दित कर रहा है, (यद्वा) यद्वा (आप्त्ये) जलपूर्ण (त्रिते) त्रिलोक में जिस सोम को तू आनन्दित कर रहा है, (यद्वा) यद्वा (मरुत्सु) मरुद्गणों में जिस सोम को तू आनन्दित कर रहा है, (इन्दुभिः) उन सब वस्तुओं के साथ विद्यमान तेरी (सम्+घ) अच्छे प्रकार से मैं स्तुति करता हूँ, हे देव ! तू प्रसन्न हो ॥१६॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर सूर्य्य से लेकर तृणपर्य्यन्त व्याप्त है और सबका भरण-पोषण कर रहा है ॥१६॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (यत्, सोमम्) जो शक्ति (विष्णवि) सूर्य में है (यद्वा) और जो (त्रिते, घ, आप्त्ये) तीन विद्याओं के जाननेवाले आप्त में है (यद्वा) और जो (इन्दुभिः) दीप्ति के साथ (मरुत्सु) वीरों में है, (संमन्दसे) उसको आप ही बढ़ाते हैं ॥१६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में परमात्मा को सर्वशक्तिसम्पन्न वर्णन किया गया है कि सूर्य्य, चन्द्रमादि दिव्य पदार्थों में जो शक्ति है, वह आप ही की दी हुई है और कर्म, उपासना तथा ज्ञानसम्पन्न विद्वानों और जो क्षात्रधर्म का पालन करनेवाले शूरवीरों में पराक्रम है, वह आप ही का प्रदत्त बल है। आपकी शक्ति तथा कृपा के बिना जड़-चेतन कोई भी पदार्थ न उन्नत हो सकता और न स्थिर रह सकता है ॥१६॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

तदीयपोषणं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! विष्णवि=विष्णौ, सूर्ये=सूर्यलोके यद् यं सोमं वस्तु। मन्दसे=आनन्दयसि=पुष्णासि। यद्वा। आप्त्ये=अद्भिः पूर्णे जलसंतते। त्रिते=त्रिलोके यं सोमं मन्दसे। यद्वा। मरुत्सु=वायुषु यं सोमम्। मन्दसे=पुष्णासि। तैरिन्दुभिः सर्वैः पदार्थैः सह वर्तमानं त्वां अहं संस्तौमि ॥१६॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (यत्, सोमम्) यां शक्तिम् (विष्णवि) सूर्ये (यद्वा) या च (त्रिते, घ, आप्त्ये) आप्तव्ये त्रिते श्रोत्रिये (यद्वा) यां च (इन्दुभिः) दीप्तिभिः सह (मरुत्सु) वीरेषु (संमन्दसे) वर्धयसि, सा ते शक्तिः ॥१६॥