वांछित मन्त्र चुनें

मदे॑नेषि॒तं मद॑मु॒ग्रमु॒ग्रेण॒ शव॑सा । विश्वे॑षां तरु॒तारं॑ मद॒च्युतं॒ मदे॒ हि ष्मा॒ ददा॑ति नः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

madeneṣitam madam ugram ugreṇa śavasā | viśveṣāṁ tarutāram madacyutam made hi ṣmā dadāti naḥ ||

पद पाठ

मदे॑न । इ॒षि॒तम् । मद॑म् । उ॒ग्रम् । उ॒ग्रेण॑ । शव॑सा । विश्वे॑षाम् । त॒रु॒तार॑म् । म॒द॒ऽच्युत॑म् । मदे॑ । हि । स्म॒ । ददा॑ति । नः॒ ॥ ८.१.२१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:1» मन्त्र:21 | अष्टक:5» अध्याय:7» वर्ग:14» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:1» मन्त्र:21


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

सर्वप्रद होने के कारण परमात्मा ही प्रार्थनीय है, इससे यह शिक्षा दी जाती है।

पदार्थान्वयभाषाः - वह इन्द्र (मदेन) आनन्द से और (उग्रेण) महाभयङ्कर (शवसा) बल से युक्त है, पुनः वह जीव से (इषितम्) अभिलषित (उग्रम्+मदम्) महान् प्रतापी आनन्द को (ददाति) देता है। केवल अलौकिक आनन्द को ही वह नहीं देता, किन्तु (मदे) महान् आनन्द देने के पश्चात् वह भगवान् (विश्वेषाम्) सकल लौकिक आनन्दों के मध्य (तरुतारम्) विजेता (मदच्युतम्) आनन्दोद्भूत पुत्रादिरूप आनन्द भी (हि) निश्चय करके (नः) हमको (ददाति+स्म) दिया करता है ॥२१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! इस संसार में आनन्दप्रद बहुत वस्तुएँ उसने दी हैं। स्त्री, पति, पुत्र, कन्या, कुसुम, मेघ, समुद्र, नदियाँ, ऋतु, सायं, उषा इस प्रकार की वस्तु विद्वानों को आह्लादित करती हैं। पदार्थों से आनन्द लेने की चेष्टा करो ॥२१॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

अब उपासक शत्रुओं के दमनार्थ परमात्मा से प्रार्थना करता है।

पदार्थान्वयभाषाः - (मदे) उपासना से अनुकूल होने पर परमात्मा (मदेन, इषितं) हर्ष से प्राप्त करने योग्य (मदं, उग्रं) हर्षकारक, अधर्षणीय (उग्रेण, शवसा) अधिक बल से युक्त (विश्वेषां, तरुतारं) सब शत्रुओं को पार=दमन करनेवाले (मदच्युतं) उनके मद को नाश करनेवाले सेनानी को (नः) हमको (हि) निश्चय (ददाति, स्म) देता है ॥२१॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपासक की उपासना से अनुकूल होकर उसके बलवान् शत्रु का भी दमन करके उसकी सर्व प्रकार से रक्षा करते हैं, इसलिये सब पुरुषों को सदा उसकी प्रार्थना तथा उपासना में प्रवृत्त रहना चाहिये। सार यह है कि प्रार्थना भी एक कर्म है और वह नम्रता, अधिकारित्व तथा पात्रत्वादि धर्मों को अवश्य धारण कराती है, इसलिये प्रार्थना का फल शत्रुदमनादि कोई दुष्कर कर्म नहीं ॥२१॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

सर्वप्रदत्त्वात्परमात्मैव प्रार्थनीय इत्यनया शिक्षते।

पदार्थान्वयभाषाः - स इन्द्रः परमात्मा। मदेन=आनन्देन। उग्रेण=महता। शवसा=बलेन ज्ञानलक्षणेन च युक्तोऽस्ति। सः। जीवात्मना इषितं=वाञ्छितम्। उग्रं=महान्तमतिशयप्रतापिनम्। मदम्=आनन्दम्। ददाति। पुनः। मदे=आनन्दे प्रदत्ते सति। लौकिकानन्दप्रदम्। विश्वेषां=सर्वेषाम् लौकिकानामानन्दानां मध्ये। तरुतारं=तरीतारं=जेतारम्। मदच्युतं=मदादानन्दात् च्युतम्=समुद्भूतं पुत्रलक्षणम्। नः=अस्मभ्यम्। ददाति स्म हि=ददात्येव ॥२१॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

अथोपासकः शत्रुदमनाय परमात्मानं प्रार्थयते।

पदार्थान्वयभाषाः - स परमात्मा−(मदे) उपासनया प्रसादे जाते सति (मदेन, इषितं) हर्षेण प्राप्यं (मदं) हर्षकरं (उग्रं) अधृष्यं (उग्रेण, शवसा) महता बलेन युक्तं (विश्वेषां) सर्वेषां शत्रूणां (तरुतारं) जेतारं (मदच्युतं) तेषां हर्षहारिणं सेनान्यं (नः) अस्मभ्यं (हि) निश्चयं (ददाति, स्म) ददाति “स्म पूरकः” ॥२१॥