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क्रत्व॑: समह दी॒नता॑ प्रती॒पं ज॑गमा शुचे । मृ॒ळा सु॑क्षत्र मृ॒ळय॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kratvaḥ samaha dīnatā pratīpaṁ jagamā śuce | mṛḻā sukṣatra mṛḻaya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क्रत्वः॑ । स॒म॒ह॒ । दी॒नता॑ । प्र॒ति॒ऽई॒पम् । ज॒ग॒म॒ । शु॒चे॒ । मृ॒ळ । सु॒ऽक्ष॒त्र॒ । मृ॒ळय॑ ॥ ७.८९.३

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:89» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:6» वर्ग:11» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (समह) हे सर्वशक्तिमन् परमात्मन् ! (क्रत्वः) सत्कर्मों के आचरण से (दीनता) दीनता करके (प्रतीपं) मैं प्रतिकूल आचरण करता रहा, (मृळ) हे परमात्मन् ! आप मेरी रक्षा करें, (सुक्षत्र) हे सर्वरक्षक परमात्मन् ! आप (मृळय) मुझे योग्य बनायें, ताकि मैं कर्मों का अनुष्ठान कर सकूं ॥३॥
भावार्थभाषाः - पुरुष अपनी निर्बलता से शुभकर्मों को जानता हुआ भी उनका अनुष्ठान नहीं कर सकता, प्रत्युत अपनी दीनता से उनके विरुद्ध आचरण करता है, इसलिए इस मन्त्र में परमात्मा ने उपदेश किया है कि हे वैदिक धर्म्मानुयायी पुरुषो ! तुम उद्योगी बनने के लिए परमात्मा से सदैव प्रार्थना करो कि हे परमात्मन् ! आप हमको आत्मिक बल दें, ताकि हम कर्मानुष्ठानी बनकर अकर्म्मण्यतारूप दोष को दूर करके सत्कर्मी बनें ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

उत्तम बालवाले मुझ पर कृपा कर

पदार्थान्वयभाषाः - पदार्थ- हे (सम) =ह पूज्य ! (दीनता) = दीन होने के कारण मैं (क्रत्वः) = सत् कर्म और सत् ज्ञान के (प्रतीपं जगम) = विपरीत चला गया हूँ और (शुचे) = शोक करता हूँ। अथवा हे (शुचे) = शुद्ध प्रभो ! हे (सु क्षत्र) = बलशालिन् ! तू (मृड, मृडय) = सुखी कर, कृपा कर।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-दुर्बल मानसिकता का मनुष्य सत्कर्मों को छोड़ दुष्कर्मों में लग जाता है इससे महान् दुःख पाता है। अतः मनुष्य उत्तम बलवाले परमेश की शरण में जाकर उसकी कृपा का पात्र बनने का प्रयास करे।
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (समह) हे सर्वशक्तिमन् परमात्मन् ! (क्रत्वः) सत्कर्माचरणेन (दीनता) दैन्येन (प्रतीपम्) प्रतिकूलमाचरं (मृळ) हे परमात्मन् ! रक्ष (सुक्षत्र) हे विश्वपालक ! (मृळय) मां सुकर्मयोग्यं विधाय सुखय येन त्वां सेवेय ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O lord of holy action and magnanimity, if by weakness or error I go astray or move into the opposite direction, then, O noble ruler, be gracious and kind and save me.