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अहे॑म य॒ज्ञं प॒थामु॑रा॒णा इ॒मां सु॑वृ॒क्तिं वृ॑षणा जुषेथाम् । श्रु॒ष्टी॒वेव॒ प्रेषि॑तो वामबोधि॒ प्रति॒ स्तोमै॒र्जर॑माणो॒ वसि॑ष्ठः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ahema yajñam pathām urāṇā imāṁ suvṛktiṁ vṛṣaṇā juṣethām | śruṣṭīveva preṣito vām abodhi prati stomair jaramāṇo vasiṣṭhaḥ ||

पद पाठ

अहे॑म । य॒ज्ञम् । प॒थाम् । उ॒रा॒णाः । इ॒माम् । सु॒ऽवृ॒क्तिम् । वृ॒ष॒णा॒ । जु॒षे॒था॒म् । श्रु॒ष्टी॒वाऽइ॑व । प्रऽइ॑षितः । वा॒म् । अ॒बो॒धि॒ । प्रति॑ । स्तोमैः॑ । जर॑माणः । वसि॑ष्ठः ॥ ७.७३.३

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:73» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:5» वर्ग:20» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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आर्यमुनि

अब परमात्मा यज्ञकर्त्ता पुरुष को वेदाध्ययन का विधान करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (उराणाः) हे वेदवाणियों के वक्ता याज्ञिक लोगो ! तुम (इमां सुवृक्तिम्) इस सुन्दर वाणी को (जुषेथां) सेवन करते हुए (यज्ञं पथां अहेम) यज्ञ के मार्ग को बढ़ाओ और (वसिष्ठः) सर्वोत्तम गुणोंवाला (श्रुष्टीवेव प्रेषितः) सर्वत्र व्यापक और (वृषणा) सब कामनाओं को पूर्ण करनेवाला परमात्मा (स्तोमैः जरमाणः) जो वेदवाणियों द्वारा वर्णन किया जाता है, वह (वां प्रति) तुम्हारे प्रति (अबोधि) बोधन करे ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का भाव स्पष्ट है अर्थात् यज्ञनिधि परमात्मा याज्ञिक लोगों को उपदेश करते हैं कि तुम लोग वेदों का अध्ययन करते हुए यज्ञ की वृद्धि करो अर्थात् यज्ञ के सूक्ष्मांशों को वेद के अभ्यास द्वारा जानकर यज्ञविषयक उन्नति में प्रवृत्त होओ और सर्वगुणसम्पन्न तथा सब कामनाओं को पूर्ण करनेवाले परमात्मा की उपासना करते हुए प्रार्थना करो कि वह हमारी इस कामना को पूर्ण करे ॥३॥
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आर्यमुनि

अथ याजका वेदाध्ययनं कुर्युरित्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (उराणाः) हे वेदवाग्वक्तारो विद्वांसः ! यूयम् (इमाम् सुवृक्तिम्) इमां सुन्दरीं गिरं (जुषेथाम्) सेवध्वं (यज्ञम् पथाम्) यज्ञमार्गं (अहेम) वर्द्धयत अन्यच्च (वसिष्ठः) सर्वोत्तमगुणसम्पन्नः (श्रुष्टीवेव प्रेषितः) सर्वव्यापकः (वृषणा) समस्तमनोरथपूरकश्च परमात्मा (स्तोमैः जरमाणः) यो वेदवाणिभिर्वर्ण्यते, सः (वाम् प्रति) युष्मान् (अबोधि) बोधयतु ॥३॥