पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानों ! (युवं) तुम्हारा (जरसः अमुमुक्तं) जीर्णता से रहित (च्यवानं) ज्ञान (नि) निरन्तर (पेदवे) हमारी रक्षा के लिये हो और (निः) निस्सन्देह (अश्वं आशुं ऊहथुः) राष्ट्र को शीघ्र प्राप्त कराये (अन्धसः तमसः) अज्ञानरूप तम से (अत्रिं) अरक्षित राष्ट्र को (जाहुषं) निकाले और उसके (शिथिरे) शिथिल होने पर (अन्तः धातं) आत्मा बनकर धारण करे ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानों ! आपका जीर्णता से रहित नित नूतन ज्ञान हमारी सब ओर से रक्षा करे और वह पवित्र ज्ञान हमें राष्ट्र=ऐश्वर्य्य प्राप्त कराये और आपके ज्ञान द्वारा हम अपने गिरे हुए राष्ट्र को भी पुनः जीवित करें ॥ तात्पर्य्य यह है कि विद्वानों के उपदेशों से ज्ञान को प्राप्त हुए प्रजाजन अपने ऐश्वर्य्य को बढ़ाते और गिरे हुए राष्ट्र को भी फिर उठाते हैं अर्थात् जिस प्रकार इस अस्थिमय चर्मावगुण्ठित शरीर को केवल अपनी सत्ता से जीवात्मा ही उठाता है, इस प्रकार राष्ट्ररूप कलेवर को उठानेवाला एकमात्र ज्ञान ही है, इसलिये इस मन्त्र में विद्वानों से प्रार्थना है। आप ऐसी कृपा करें कि हम लोग ज्ञानी तथा विज्ञानी बनकर राष्ट्र को शरीरवत् धारण करते हुए सुखपूर्वक रहें ॥५॥