पदार्थान्वयभाषाः - (वां) हे न्यायाधीश तथा सेनाधीश राजपुरुषो ! (नु) निश्चय करके (यत्) जब (चित्रं, भोजनं) विविध प्रकार के अन्न राज्य में (अस्ति) होते हैं, तब (वां) तुमको (ओमानं) रक्षायुक्त जानकर (नि) निरन्तर सब लोग (प्रियः, सन्) प्यार करते हुए (दधते) धारण करते हैं, क्योंकि (यः) जो (अत्रये) रक्षा के लिये (महिष्वन्तं) बड़ा होता है, (ह) प्रसिद्ध है कि उसी से सब लोग (युयोतं) जुड़ते हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे राजपुरुषो ! तुम अन्न का कोष और विविध प्रकार के धनों को सम्पादन करके पूर्ण ऐश्वर्य्ययुक्त होओ, तुम्हारे ऐश्वर्य्यसम्पन्न होने पर सब लोग तुम्हारे शासन में रहते हुए तुमसे मेल करेंगे, क्योंकि ऐश्वर्य्ययुक्त पुरुष से सब प्रजाजन मेल रखते तथा प्यार करते हैं, अत एव प्रजापालन करनेवाले राजा का मुख्य कर्त्तव्य है कि सब प्रकार के यत्नों से ऐश्वर्य्य लाभ करे ॥५॥