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ता भूरि॑पाशा॒वनृ॑तस्य॒ सेतू॑ दुर॒त्येतू॑ रि॒पवे॒ मर्त्या॑य । ऋ॒तस्य॑ मित्रावरुणा प॒था वा॑म॒पो न ना॒वा दु॑रि॒ता त॑रेम ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā bhūripāśāv anṛtasya setū duratyetū ripave martyāya | ṛtasya mitrāvaruṇā pathā vām apo na nāvā duritā tarema ||

पद पाठ

ता । भूरि॑ऽपाशौ । अनृ॑तस्य । सेतू॒ इति॑ । दु॒र॒त्येतू॒ इति॑ दुः॒ऽअ॒त्येतू॑ । रि॒पवे॑ । मर्त्या॑य । ऋ॒तस्य॑ । मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒ । प॒था । वा॒म् । अ॒पः । न । ना॒वा । दुः॒ऽइ॒ता । त॒रे॒म॒ ॥ ७.६५.३

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:65» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:5» वर्ग:7» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतस्य) सत्य का (पथा) मार्ग जो (मित्रावरुणा) सबका मित्र तथा वरणीय परमात्मा है, वह (वां) हम राजा प्रजा को (अपः) जल की (नावा) नौकाओं के (न) समान (दुरिता) पापों से (तरेम) तारे, वह परमात्मा (मर्त्याय) मरणधर्मा मनुष्यों के (रिपवे) रिपुओं के लिए (भूरिपाशौ) अनन्त बलयुक्त और (ता) पूर्वोक्त गुणोंवाले भक्तों के लिए (अनृतस्य) अनृत से तराने का (सेतू) पुल हैं, जिसके द्वारा उसका भक्त सब प्रकार के विघ्नों से (दुरत्येतू) तर जाता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यों ! जल की नौकाओं के समान तुम्हारे तराने का एकमात्र साधन परमात्मा ही है, इसलिए तुम सेतु के समान उस पर विश्वास करके इस संसाररूप भवसागर को, जिसमें रिपु आदि अनेक प्रकार के दुरितरूप नक और असत्यादि अनेक प्रकार के भँवर हैं, इन सब से बचकर पार होने के लिए तुम्हें एकमात्र जगदीश्वर का ही अवलम्बन करना चाहिए, अन्य कोई साधन नहीं ॥३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतस्य) सत्यस्य (पथा) मार्गेण (मित्रावरुणा) शक्तिद्वयवान्परमात्मा सर्वस्य मित्रः सर्वस्य वरणीयश्च (वां) राजानं तथा प्रजाजनं (नावा) नौकल्पसाधनैः (नः) अस्मान् (दुरत्येतू) तारयतु अन्यच्च (भूरिपाशौ) अनन्तबलयुक्तः (अनृतस्य सेतू) सन्मर्य्यादेत्यर्थः, तद्द्वारेण तद्भक्तः विघ्नौघं तरतीत्यर्थः, इत्यत्र द्विवचनमतन्त्रम्, “बहुलं छन्दसीति” विधानात् अर्थात् छन्दसि द्विवचनस्थानेऽपि एकवचनं सम्पद्यत इत्यर्थः ॥३॥