पदार्थान्वयभाषाः - (तरणिः) सब का तारक (भ्राजमानः) प्रकाशरूप (दूरेअर्थः) सर्वत्र परिपूर्ण (दिवः रुक्मः) द्युलोक का प्रकाशक (उरुचक्षाः) सर्वद्रष्टा परमात्मा उन लोगों के हृदय में (उदेति) उदय होता है, जो (जनाः) पुरुष (नूनम्) निश्चय करके (सूर्येण) परमात्मा के बतलाये हुए (अयन्) मार्गों पर चलते हुए (प्रसूताः) नूतन जन्मवाले (अर्थानि) सार्थक (अपांसि) कर्म (कृणवन्) करते हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे पुरुषो ! सन्मार्ग दिखलानेवाला प्रकाशस्वरूप परमात्मा सर्वत्र परिपूर्ण और चमकते हुए द्युलोक का भी प्रकाशक है, वह स्वतःप्रकाश प्रभु उन पुरुषों के हृदय में प्रकाशित होता है, जो उसकी आज्ञा का पालन करते और वेदविहित कर्म करके सफलता को प्राप्त होते हैं ॥ तात्पर्य यह है कि यावदायुष वेदविहित कर्म करनेवाले सत्कर्मी पुरुषों के हृदय में परमात्मा का प्रकाश होता है, निरुद्यमी, आलसी तथा अज्ञानियों के हृदय में नहीं, इसी भाव को “कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः” यजु॰ ४०।२॥ इस मन्त्र में निरूपण किया है कि वेदविहित कर्म करते हुए ही सौ वर्ष जीने की इच्छा करो ॥४॥