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स्वा॒यु॒धास॑ इ॒ष्मिणः॑ सुनि॒ष्का उ॒त स्व॒यं त॒न्वः१॒॑ शुम्भ॑मानाः ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

svāyudhāsa iṣmiṇaḥ suniṣkā uta svayaṁ tanvaḥ śumbhamānāḥ ||

पद पाठ

सु॒ऽआ॒यु॒धासः॑। इ॒ष्मिणः॑। सु॒ऽनि॒ष्काः। उ॒त। स्व॒यम्। त॒न्वः॑। शुम्भ॑मानाः ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:56» मन्त्र:11 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:24» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (स्वायुधासः) अच्छे हथियारोंवाले (इष्मिणः) इच्छा और जलादि पदार्थों से युक्त (सुनिष्काः) जिन के सुन्दर सुवर्ण के गहने विद्यमान (उत) और (स्वयम्) आप (तन्वः) शरीरों की (शुम्भमानाः) शोभा करते हुए वर्त्तमान हैं, वे ही विजय और प्रशंसा को पाते हैं ॥११॥
भावार्थभाषाः - जो धुनर्वेद को पढ़ के आरोग्ययुक्त शरीर और युद्ध विद्या में कुशल हैं, वे ही धनधान्ययुक्त होते हैं ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्याः ! ये स्वायुधास इष्णिणः सुनिष्का उत स्वयं तन्वः शुम्भमानास्सन्ति त एव विजयप्रशंसे प्राप्नुवन्ति ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वायुधासः) शोभनान्यायुधानि येषान्ते (इष्मिणः) इच्छान्नादियुक्ताः (सुनिष्काः) शोभनानि निष्काणि सौवर्णानि येषां ते (उत) (स्वयम्) (तन्वः) शरीराणि (शुम्भमानाः) शोभमानाः ॥११॥
भावार्थभाषाः - ये धनुर्वेदमधीत्यारोगशरीरा युद्धविद्याकुशलास्सन्ति त एव धनधान्ययुक्ता भवन्ति ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे धनुर्वेद शिकून आरोग्ययुक्त शरीर बनवितात व युद्धविद्येत कुशल असतात तेच धनधान्याने युक्त होतात. ॥ ११ ॥