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भग॒ प्रणे॑त॒र्भग॒ सत्य॑राधो॒ भगे॒मां धिय॒मुद॑वा॒ दद॑न्नः। भग॒ प्र णो॑ जनय॒ गोभि॒रश्वै॒र्भग॒ प्र नृभि॑र्नृ॒वन्तः॑ स्याम ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bhaga praṇetar bhaga satyarādho bhagemāṁ dhiyam ud avā dadan naḥ | bhaga pra ṇo janaya gobhir aśvair bhaga pra nṛbhir nṛvantaḥ syāma ||

पद पाठ

भग॑। प्रऽने॑त॒रिति॒ प्रऽने॑तः। भग॑। सत्य॑ऽराधः। भग॑। इ॒माम्। धिय॑म्। उत्। अ॒व॒। दद॑त्। नः॒। भग॑। प्र। नः॒। ज॒न॒य॒। गोभिः॑। अश्वैः॑। भग॑। प्र। नृऽभिः॑। नृ॒ऽवन्तः॑। स्या॒म॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:41» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:8» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को ईश्वर की प्रार्थना क्यों करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (भग) सकलैश्वर्य्ययुक्त (प्रणेतः) उत्तमता से प्राप्ति करानेवाले (भग, सत्यराधः) अत्यन्त सेवा करने योग्य प्रकृतिरूप धनयुक्त (भग) सकल ऐश्वर्य देनेवाले ईश्वर ! आप कृपा कर (नः) हम लोगों के लिये (इमाम्) इस प्रशंसायुक्त (धियम्) उत्तम बुद्धि को (ददत्) देते हुए हम लोगों की (उत्, अव) उत्तमता से रक्षा कीजिये, हे (भग) सर्वसामग्री युक्त ! (नः) हम लोगों के लिये (गोभिः) गौवें वा पृथिवी आदि से (अश्वैः) वा शीघ्रगामी घोड़ा वा पवन वा बिजुली आदि से (प्र, जनय) उत्तमता से उत्पत्ति दीजिये, हे (भग) सकलैश्वर्य्य युक्त ! आप हम लोगों को (नृभिः) नायक श्रेष्ठ मनुष्यों से (प्र) उत्तम उत्पत्ति दीजिये जिस से हम लोग (नृवन्तः) बहुत उत्तम मनुष्य युक्त (स्याम) हों ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य ईश्वर की आज्ञा, प्रार्थना, ध्यान और उपासना का आचरण पहिले करके पुरुषार्थ करते हैं, वे धर्मात्मा होकर अच्छे सहायवान् हुए सकल ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैरीश्वरः किमर्थं प्रार्थनीय इत्याह ॥

अन्वय:

हे भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेश्वर ! त्वं कृपया न इमां धियं दददस्मानुदव हे भग ! नो गोभिरश्वैः प्र जनय, हे भग ! त्वमस्मान्नृभिः प्र जनय यतो वयं नृवन्तस्स्याम ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (भग) सकलैश्वर्ययुक्त (प्रणेतः) प्रकर्षेण प्रापक (भग) सेवनीयतम (सत्यराधः) सत्यं राधः प्रकृत्याख्यं धनं यस्य तत्सम्बुद्धौ (भग) सकलैश्वर्यप्रद (इमाम्) वर्तमानां प्रशस्ताम् (धियम्) प्रज्ञाम् (उत्) (अव) रक्ष वर्धय वा। अत्र द्व्यचो॰ इति दीर्घः। (ददत्) प्रयच्छन् (नः) अस्मभ्यम् (भग) सर्वसामग्रीप्रद (प्र) (नः) अस्मभ्यम् (जनय) (गोभिः) धेनुभिः पृथिव्यादिभिर्वा (अश्वैः) तुरङ्गैर्महद्भिर्विद्युदादिभिर्वा (भग) सकलैश्वर्ययुक्त (प्र) (नृभिः) नायकैः श्रेष्ठैर्मनुष्यैः (नृवन्तः) बहूत्तममनुष्ययुक्ताः (स्याम) भवेम ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या ईश्वराज्ञाप्रार्थनाध्यानोपासनानुष्ठानपुरःसरं पुरुषार्थं कुर्वन्ति ते धर्मात्मानो भूत्वा सुसहायास्सन्तः सकलैश्वर्यं लभन्ते ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे ईश्वराची आज्ञा, प्रार्थना, ध्यान व उपासना प्रथम करून नंतर पुरुषार्थ करतात ती धर्मात्मा बनून साह्यकर्ती होतात व संपूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ३ ॥