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देवता: त एव ऋषि: वसिष्ठः छन्द: त्रिष्टुप् स्वर: धैवतः

स॒त्रे ह॑ जा॒तावि॑षि॒ता नमो॑भिः कु॒म्भे रेतः॑ सिषिचतुः समा॒नम्। ततो॑ ह॒ मान॒ उदि॑याय॒ मध्या॒त्ततो॑ जा॒तमृषि॑माहु॒र्वसि॑ष्ठम् ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

satre ha jātāv iṣitā namobhiḥ kumbhe retaḥ siṣicatuḥ samānam | tato ha māna ud iyāya madhyāt tato jātam ṛṣim āhur vasiṣṭham ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒त्रे। ह॒। जा॒तौ। इ॒षि॒ता। नमः॑ऽभिः। कु॒म्भे। रेतः॑। सि॒सि॒च॒तुः॒। स॒मा॒नम्। ततः॑। ह॒। मानः॑। उत्। इ॒या॒य॒। मध्या॒त्। ततः॑। जा॒तम्। ऋषि॑म्। आ॒हुः॒। वसि॑ष्ठम् ॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:33» मन्त्र:13 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:24» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कैसे विद्वान् होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यदि (जातौ) प्रसिद्ध हुए (इषिताः) अध्यापक और उपदेशक (नमोभिः) अन्नादिकों से (सत्रे) दीर्घ (ह) ही पढ़ाने पढ़नेरूप यज्ञ में (कुम्भे) कलश में (रेतः) जल के (समानम्) समान विज्ञान को (सिषिचतुः) सीचें छोड़ें (ततः, ह) उसी से जो (मानः) माननेवाला (उत्, इयाय) उदय को प्राप्त होता है (ततः) उस (मध्यात्) मध्य से (जातम्) उत्पन्न हुए (वसिष्ठम्) उत्तम (ऋषिम्) वेदार्थवेत्ता विद्वान् को (आहुः) कहते हैं ॥१३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे स्त्री और पुरुषों से सन्तान उत्पन्न होता है, वैसे अध्यापक और उपदेशकों के पढ़ाने और उपदेश करने से विद्वान् होते हैं ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः कथं विद्वांसो जायन्त इत्याह ॥

अन्वय:

यदि जाताविषिता नमोभिः सत्रे हाऽध्यापनाध्ययनाख्ये यज्ञे कुम्भे रेत इव समानं विज्ञानं सिषिचतुस्ततो ह यो मान उदियाय ततो मध्याज्जातं वसिष्ठमृषिमाहुः ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सत्रे) दीर्घे यज्ञे (ह) खलु (जातौ) (इषिता) इषितावध्यापकोपदेशकौ (नमोभिः) (कुम्भे) कलशे (रेतः) उदकमिव विज्ञानम् (सिषिचतुः) सिञ्चेताम् (समानम्) तुल्यम् (ततः) (ह) प्रसिद्धम् (मानः) यो मन्यते सः (उत्) (इयाय) एति (मध्यात्) (ततः) तस्मात् (जातम्) प्रादुर्भूतम् (ऋषिम्) वेदार्थवेत्तारम् (आहुः) (वसिष्ठम्) उत्तमं विद्वांसम् ॥१३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा स्त्रीपुरुषाभ्यामपत्यं जायते तथाऽध्यापकोपदेशकाऽध्ययनोपदेशैर्विद्वांसो जायन्ते ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे स्त्री-पुरुषांपासून संतान उत्पन्न होते तसे अध्यापक व उपदेशकाच्या शिकविण्याने व उपदेशाने विद्वान होता येते. ॥ १३ ॥