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म॒घोनः॑ स्म वृत्र॒हत्ये॑षु चोदय॒ ये दद॑ति प्रि॒या वसु॑। तव॒ प्रणी॑ती हर्यश्व सू॒रिभि॒र्विश्वा॑ तरेम दुरि॒ता ॥१५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

maghonaḥ sma vṛtrahatyeṣu codaya ye dadati priyā vasu | tava praṇītī haryaśva sūribhir viśvā tarema duritā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒घोनः॑। स्म॒। वृ॒त्र॒ऽहत्ये॑षु। चो॒द॒य॒। ये। दद॑ति। प्रि॒या। वसु॑। तव॑। प्रऽनी॑ती। ह॒रि॒ऽअ॒श्व॒। सू॒रिऽभिः॑। विश्वा॑। त॒रे॒म॒। दुः॒ऽइ॒ता ॥१५॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:32» मन्त्र:15 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:19» मन्त्र:5 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:15


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (हर्यश्व) हरणशील महान् घोड़ोंवाले मनुष्य ! (सूरिभिः) विद्वानों के साथ (ये) जो (तव) आपकी (प्रणीती) उत्तम नीति से (प्रिया) प्रिय मनोहर (वसु) धनों को (ददति) देते हैं उनको और जो आपकी उत्तम नीति और विद्वानों के साथ हम लोग (विश्वा) सब (दुरिता) दुःखों को (तरेम) तरें उन्हें भी आप (वृत्रहत्येषु) शत्रुओं की हिंसा जिनमें होती है उनमें (मघोनः) धनाढ्य करने (स्म) ही को (चोदय) प्रेरणा देओ ॥१५॥
भावार्थभाषाः - हे राजा ! आप यदि पक्षपात को छोड़ के सबकी रक्षा करें और उदार धनाढ्यों को संग्राम में प्रेरणा दें तो सब हम लोग सब दुःखों को तरें ॥१५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे हर्यश्व ! सूरिभिस्सह ये तव प्रणीती प्रिया वसु ददति तान् ये च तव प्रणीती सूरिभिः सह वयं विश्वा दुरिता तरेम ताँश्च त्वं वृत्रहत्येषु मघोनः स्म चोदय ॥१५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मघोनः) धनाढ्यान् (स्म) एव (वृत्रहत्येषु) वृत्राणां शत्रूणां हत्या येषु सङ्ग्रामेषु तेषु (चोदय) प्रेरय (ये) (ददति) (प्रिया) प्रियाणि कमनीयानि (वसु) धनानि (तव) (प्रणीति) प्रकृष्टया नीत्या रक्षिताः सन्तः (हर्यश्व) हरयोऽश्वा महान्तो मनुष्या यस्य तत्सम्बुद्धौ (सूरिभिः) विद्वद्भिः सह (विश्वा) सर्वाणि (तरेम) (दुरिता) दुःखानि ॥१५॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! भवान् यदि पक्षपातं विहाय सर्वान् रक्षेदुदारान् धनाढ्यान् सङ्ग्रामेषु प्रेरयेत्तर्हि सर्वे वयं सर्वाणि दुःखानि तरेम ॥१५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! तू पक्षपात सोडून सर्वांचे रक्षण केलेस व उदार धनिक लोकांना युद्धात प्रेरणा दिलीस तर आम्ही सर्व लोक सर्व दुःखातून तरून जाऊ. ॥ १५ ॥