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हव॑न्त उ त्वा॒ हव्यं॒ विवा॑चि त॒नूषु॒ शूराः॒ सूर्य॑स्य सा॒तौ। त्वं विश्वे॑षु॒ सेन्यो॒ जने॑षु॒ त्वं वृ॒त्राणि॑ रन्धया सु॒हन्तु॑ ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

havanta u tvā havyaṁ vivāci tanūṣu śūrāḥ sūryasya sātau | tvaṁ viśveṣu senyo janeṣu tvaṁ vṛtrāṇi randhayā suhantu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

हव॑न्ते। ऊँ॒ इति॑। त्वा॒। हव्य॑म्। विऽवा॑चि। त॒नूषु॑। शूराः॑। सूर्य॑स्य। सा॒तौ। त्वम्। विश्वे॑षु। सेन्यः॑। जने॑षु। त्वम्। वृ॒त्राणि॑। र॒न्ध॒य॒। सु॒ऽहन्तु॑ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:30» मन्त्र:2 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:14» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमैश्वर्ययुक्त ! जो (त्वम्) आप (विश्वेषु) सब (जनेषु) मनुष्यों में (सेन्यः) सेना में उत्तम होते हुए (वृत्राणि) शत्रु सैन्य जन आदि को (रन्धय) मारो (त्वम्) आप जैसे वीर होता हुआ जन शत्रुओं को अच्छे प्रकार हने, वैसे उनको आप (सुहन्तु) मारो (सूर्यस्य) सवितृमण्डल की किरणों के समान राज्य के बीच और (तनूषु) फैला है बल जिनमें उन शरीरों में प्रकाशमान (शूराः) शत्रुओं के मारनेवाले जन जिन (हव्यम्) बुलाने योग्य (त्वा) आपको (सातौ) संविभाग में अर्थात् बाँट चूँट में वा (विवाचि, उ) विरुद्ध वाणी जिसमें होती है उस संग्राम में (हवन्ते) बुलावें उनको आप बुलावें ॥२॥
भावार्थभाषाः - वही राजा सर्वप्रिय होता है, जो न्याय से प्रजा की अच्छी पालना कर संग्राम जीतता है ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! यस्त्वं विश्वेषु जनेषु सेन्यः सन् वृत्राणि रन्धय त्वं यथा वीरः सन् शत्रून् सुहन्तु तथैतान् हिन्धि सूर्यस्य किरणा इव तनूषु प्रकाशमानाः शूराः यं हव्यं त्वा सातौ विवाच्यु हवन्ते ताँस्त्वमाह्वय ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (हवन्ते) आह्वयन्तु (उ) (त्वा) त्वाम् (हव्यम्) आह्वानयोग्यम् (विवाचि) विरुद्धा वाचो यस्मिन् संग्रामे भवन्ति तस्मिन् (तनूषु) विस्तृतबलेषु शरीरेषु (शूराः) शत्रूणां हिंसकाः (सूर्यस्य) सवितृमण्डलस्येव राज्यस्य मध्ये (सातौ) संविभागे (त्वम्) (विश्वेषु) (सेन्यः) सेनासु साधुः (जनेषु) मनुष्येषु (त्वम्) (वृत्राणि) शत्रुसैन्यानि (रन्धय) हिंसय (सुहन्तु) ॥२॥
भावार्थभाषाः - स एव राजा सर्वप्रियो भवति यो न्यायेन प्रजाः सम्पाल्य संग्रामान्विजयते ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो न्यायाने प्रजेचे चांगले पालन करून युद्ध जिंकतो तोच राजा सर्वप्रिय असतो. ॥ २ ॥