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वि यस्य॑ ते पृथि॒व्यां पाजो॒ अश्रे॑त्तृ॒षु यदन्ना॑ स॒मवृ॑क्त॒ जम्भैः॑। सेने॑व सृ॒ष्टा प्रसि॑तिष्ट एति॒ यवं॒ न द॑स्म जु॒ह्वा॑ विवेक्षि ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vi yasya te pṛthivyām pājo aśret tṛṣu yad annā samavṛkta jambhaiḥ | seneva sṛṣṭā prasitiṣ ṭa eti yavaṁ na dasma juhvā vivekṣi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि। यस्य॑। ते॒। पृ॒थि॒व्याम्। पाजः॑। अश्रे॑त्। तृ॒षु। यत्। अन्ना॑। स॒म्ऽअवृ॑क्त। जम्भैः॑। सेना॑ऽइव। सृ॒ष्टा। प्रऽसि॑तिः। ते॒। ए॒ति॒। यव॑म्। न। द॒स्म॒। जु॒ह्वा॑। वि॒वे॒क्षि॒ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:3» मन्त्र:4 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:3» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह विद्युत् कैसी है और कैसे प्रकट करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (दस्म) दुःखों के नाश करनेहारे विद्वन् ! जिस (जुह्वा) होमसाधन से (यवम्) यवों को (न) जैसे, वैसे विद्युद्विद्या को (विवेक्षि) व्याप्त होते हो वह (ते) तुम्हारी (सृष्टा) प्रयुक्त क्रिया (प्रसितिः) प्रबल बन्धन होती हुई (सेनेव) सेना के तुल्य (एति) प्राप्त होती है और (यत्) जो (जम्भैः) गात्रविक्षेपों से (अन्ना) अन्नों को (समवृक्त) अच्छे प्रकार वर्जित करता अर्थात् शरीर से छुड़ाता है (यस्य) जिस (ते) उस विद्युत् के (पाजः) बल को (पृथिव्याम्) पृथिवी में (तृषु) शीघ्र (वि, अश्रेत्) आश्रय करता है, उसको तुम जानो ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् लोग विद्युद्विद्या को जानते हैं, वे उत्तम सेना के तुल्य शत्रुओं को शीघ्र जीत सकते हैं। जैसे घी आदि से अग्नि प्रज्वलित होता, वैसे घर्षण आदि से विद्युत् अग्नि प्रकट करना चाहिये ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सा विद्युत्कीदृशी कथं प्रकटनीयेत्याह ॥

अन्वय:

हे दस्म विद्वन् ! यां जुह्वा यवं न विद्युद्विद्यां विवेक्षि सा ते सृष्टा प्रसितिः सती सेनेवैति यद्याजम्भैरन्ना समवृक्त यस्य ते विद्युद्रूपस्याग्नेः पाजः पृथिव्यां तृषु व्यश्रेत्तां त्वं विजानीहि ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वि) (यस्य) (ते) तस्या विद्युतः। अत्र पुरुषव्यत्ययः। (पृथिव्याम्) (पाजः) बलम्। पाज इति बलनाम। (निघं०२.९) (अश्रेत्) श्रयति (तृषु) क्षिप्रम् (यत्) (अन्ना) अन्नानि (समवृक्त) सम्यग्वृङ्क्ते (जम्भैः) गात्रविक्षेपैः (सेनेव) (सृष्टा) सम्प्रयुक्ता (प्रसितिः) प्रकर्षं बन्धनम् (ते) तव (एति) (यवम्) अन्नविशेषम् (न) इव (दस्म) दुःखोपक्षयितः (जुह्वा) होमसाधनेन (विवेक्षि) व्याप्नोषि ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसो विद्युद्विद्यां जानन्ति त उत्तमा सेनेव शत्रून् सद्यो जेतुं शक्नुवन्ति यथा घृतादिनाऽग्निः प्रदीप्यते तथा घर्षणादिना विद्युत्प्रदीपनीया ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान विद्युत विद्या जाणतात ते उत्तम सेनेप्रमाणे शत्रूंना जिंकू शकतात. जसा तुपाने अग्नी प्रज्वलित होतो तसा घर्षणाने विद्युत अग्नी प्रकट केला पाहिजे. ॥ ४ ॥