अ॒ग्नी रक्षां॑सि सेधति शु॒क्रशो॑चि॒रम॑र्त्यः। शुचिः॑ पाव॒क ईड्यः॑ ॥१०॥
agnī rakṣāṁsi sedhati śukraśocir amartyaḥ | śuciḥ pāvaka īḍyaḥ ||
अ॒ग्निः। रक्षां॑सि। से॒ध॒ति॒। शु॒क्रऽशो॑चिः। अम॑र्त्यः। शुचिः॑। पा॒व॒कः। ईड्यः॑ ॥१०॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
यः शुक्रशोचिरमर्त्यः शुचिः पावक ईड्योऽग्निरिव रक्षांसि सेधति स कीर्त्तिमान् भवति ॥१०॥