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देवता: अग्निः ऋषि: वसिष्ठः छन्द: त्रिष्टुप् स्वर: धैवतः

म॒हो नो॑ अग्ने सुवि॒तस्य॑ वि॒द्वान्र॒यिं सू॒रिभ्य॒ आ व॑हा बृ॒हन्त॑म्। येन॑ व॒यं स॑हसाव॒न्मदे॒मावि॑क्षितास॒ आयु॑षा सु॒वीराः॑ ॥२४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

maho no agne suvitasya vidvān rayiṁ sūribhya ā vahā bṛhantam | yena vayaṁ sahasāvan mademāvikṣitāsa āyuṣā suvīrāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒हः। नः॒। अ॒ग्ने॒। सु॒वि॒तस्य॑। वि॒द्वान्। र॒यिम्। सू॒रिऽभ्यः॑। आ। व॒ह॒। बृ॒हन्त॑म्। येन॑। व॒यम्। स॒ह॒सा॒ऽव॒न्। मदे॑म। अवि॑ऽक्षितासः। आयु॑षा। सु॒ऽवीराः॑ ॥२४॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:1» मन्त्र:24 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:27» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:24


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य विद्वानों से क्या ग्रहण करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहसावन्) बल से युक्त (अग्ने) दानशीलपुरुष (विद्वान्) विद्वान् ! आप (महः) महान् (सुवितस्य) प्रेरणा किये कर्म के कर्ता होते हुए (सूरिभ्यः) विद्वानों से (बृहन्तम्) बड़े (रयिम्) धन को (नः) हमारे लिये (आ, वह) अच्छे प्रकार प्राप्त कीजिये (येन) जिस से (अविक्षितासः) क्षीणतारहित (सुवीराः) सुन्दर वीरों से युक्त हुए (वयम्) हम लोग (आयुषा) जीवन के साथ (मदेम) आनन्दित रहें ॥२४॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विद्वानों से बड़ी विद्या को ग्रहण करते हैं, वे सब काल में वृद्धि को प्राप्त होते हुए पूर्ण लक्ष्मी और दीर्घ अवस्था को पाते हैं ॥२४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्या विद्वद्भ्यः किं गृह्णीयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे सहसावन्नग्ने विद्वाँस्त्वं महः सुवितस्य कर्ता सन् सूरिभ्यो बृहन्तं रयिं न आ वह येनाविक्षितासः सुवीराः सन्तो वयमायुषा मदेम ॥२४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (महः) (नः) अस्मभ्यम् (अग्ने) दातः (सुवितस्य) प्रेरितस्य (विद्वान्) (रयिम्) (सूरिभ्यः) विद्वद्भ्यः (आ) (वह) समन्तात्प्रापय। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (बृहन्तम्) महान्तम् (येन) (वयम्) (सहसावन्) बलेन युक्त (मदेम) आनन्देम (अविक्षितासः) अविक्षीणः क्षयरहिताः (आयुषा) जीवनेन (सुवीराः) शोभनैर्वीरैरुपेताः ॥२४॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या विद्वद्भ्यो महतीं विद्यां गृह्णन्ति ते सर्वदा वर्धमानाः सन्तः पुष्कलां श्रियं दीर्घमायुश्च प्राप्नुवन्ति ॥२४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्वानांकडून महान विद्या ग्रहण करतात ती सदैव उन्नत होतात तसेच धनवान व दीर्घायु होतात. ॥ २४ ॥