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देवता: अग्निः ऋषि: वसिष्ठः छन्द: त्रिष्टुप् स्वर: धैवतः

स मर्तो॑ अग्ने स्वनीक रे॒वानम॑र्त्ये॒ य आ॑जु॒होति॑ ह॒व्यम्। स दे॒वता॑ वसु॒वनिं॑ दधाति॒ यं सू॒रिर॒र्थी पृ॒च्छमा॑न॒ एति॑ ॥२३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa marto agne svanīka revān amartye ya ājuhoti havyam | sa devatā vasuvaniṁ dadhāti yaṁ sūrir arthī pṛcchamāna eti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। मर्तः॑। अ॒ग्ने॒। सु॒ऽअ॒नी॒क॒। रे॒वान्। अम॑र्त्ये। यः। आ॒ऽजु॒होति॑। ह॒व्यम्। सः। दे॒वता॑। व॒सु॒ऽवनि॑म्। द॒धा॒ति॒। यम्। सू॒रिः। अ॒र्थी। पृ॒च्छमा॑नः। एति॑ ॥२३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:1» मन्त्र:23 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:27» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:23


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को किसका सेवन करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (स्वनीक) सुन्दर सेनावाले (अग्ने) विद्या और विनयादि से प्रकाशमान जन ! (यः) जो (रेवान्) बहुत धनवाला होता हुआ (अमर्त्ये) मरणधर्मरहित अग्नि वा परमात्मा में (हव्यम्) देने योग्य घृतादि द्रव्य वा चित्त को (आजुहोति) अच्छे प्रकार छोड़ता वा स्थिर करता है (सः, देवता) दिव्यगुणयुक्त वह (वसुवनिम्) धनों के सेवन को (दधाति) धारण करता है (यम्) जिसको (अर्थी) प्रशस्त प्रयोजनवाला (पृच्छमानः) पूछता हुआ (सूरिः) विद्वान् (एति) प्राप्त होता है (सः) वह (मर्तः) मनुष्य सुखी करता है ॥२३॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अग्निविद्या को जान के इस अग्नि में सुगन्ध्यादि का होम करते और इससे कार्यों को सिद्ध करते हैं और जो पूछ अच्छे प्रकार विचार और ध्यान कर के परमात्मा को जानते हैं, उनको अग्नि, धनाढ्य और परमात्मा विज्ञानवान् करता है ॥२३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः कः सेवनीय इत्याह ॥

अन्वय:

हे स्वनीकाग्ने ! यो रेवान् सन्नमर्त्ये हव्यमाजुहोति स देवता वसुवनिं दधाति यमर्थी पृच्छमानः सूरिरेति स मर्तः सुखयति ॥२३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (मर्त्तः) मनुष्यः (अग्नेः) विद्याविनयादिभिः प्रकाशमान (स्वनीक) शोभनमनीकं सैन्यं यस्य तत्सम्बुद्धौ (रेवान्) बहुधनवान् (अमर्त्ये) मरणधर्मरहिते वह्नौ परमात्मनि वा (यः) (आजुहोति) समन्तात्प्रक्षिपति स्थिरीकरोति (हव्यम्) होतुं दातुमर्हं घृतादिद्रव्यं चित्तं वा (सः) (देवता) दिव्यगुणा (वसुवनिम्) धनानां सम्भाजनम् (दधाति) (यम्) (सूरिः) विद्वान् (अर्थी) प्रशस्तोऽर्थोऽस्याऽस्तीति (पृच्छमानः) (एति) प्राप्नोति ॥२३॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या अग्निविद्यां विदित्वाऽस्मिन् सुगन्ध्यादिकं जुह्वत्यनेन कार्याणि साध्नुवन्ति ये च पृष्ट्वा ध्यात्वा परमात्मानं जानन्ति तानग्निर्धनाढ्यान् परमात्माविज्ञानवतश्च करोति ॥२३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे अग्निविद्या जाणून या अग्नीत सुगंध इत्यादीचा होम करतात व कार्य सिद्ध करतात, विद्वानांना विचारून तसेच ध्यान करून परमेश्वराला जाणतात त्यांना अग्नी धनवान व परमेश्वर विज्ञानवान करतो. ॥ २३ ॥