व॒क्ष्यन्ती॒वेदा ग॑नीगन्ति॒ कर्णं॑ प्रि॒यं सखा॑यं परिषस्वजा॒ना। योषे॑व शिङ्क्ते॒ वित॒ताधि॒ धन्व॒ञ्ज्या इ॒यं सम॑ने पा॒रय॑न्ती ॥३॥
vakṣyantīved ā ganīganti karṇam priyaṁ sakhāyam pariṣasvajānā | yoṣeva śiṅkte vitatādhi dhanvañ jyā iyaṁ samane pārayantī ||
व॒क्ष्यन्ती॑ऽइव। इत्। आ। ग॒नी॒ग॒न्ति॒। कर्ण॑म्। प्रि॒यम्। सखा॑यम्। प॒रि॒ऽस॒स्व॒जा॒ना। योषा॑ऽइव। शि॒ङ्क्ते॒। विऽत॑ता। अधि॑। धन्व॑न्। ज्या। इ॒यम्। सम॑ने। पा॒रय॑न्ती ॥३॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर ये किससे कौन क्रिया को करते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनरेते कया कां क्रियां कुर्वन्तीत्याह ॥
हे शूरवीर ! येयं ज्या वक्ष्यन्तीव प्रियं सखायं परिषस्वजाना योषेव कर्णमागनीगन्ति, अधि धन्वन् वितता समने पारयन्ती सती शिङ्क्ते तामिद् यूयं यथावद्विज्ञाय सम्प्रयुङ्ध्वम् ॥३॥