प्र स॒म्राजे॑ बृह॒ते मन्म॒ नु प्रि॒यमर्च॑ दे॒वाय॒ वरु॑णाय स॒प्रथः॑। अ॒यं य उ॒र्वी म॑हि॒ना महि॑व्रतः॒ क्रत्वा॑ वि॒भात्य॒जरो॒ न शो॒चिषा॑ ॥९॥
pra samrāje bṛhate manma nu priyam arca devāya varuṇāya saprathaḥ | ayaṁ ya urvī mahinā mahivrataḥ kratvā vibhāty ajaro na śociṣā ||
प्र। स॒म्ऽराजे॑। बृ॒ह॒ते। मन्म॑। नु। प्रि॒यम्। अर्च॑। दे॒वाय॑। वरु॑णाय। स॒ऽप्रथः॑। अ॒यम्। यः। उ॒र्वी इति॑। म॒हि॒ना। महि॑ऽव्रतः। क्रत्वा॑। वि॒ऽभाति॑। अ॒जरः॑। न। शो॒चिषा॑ ॥९॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वह राजा कैसा है और उसके लिये क्या उपदेश देना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स राजा कीदृशोऽस्मै किमुपदेष्टव्यमित्याह ॥
हे विद्वन् ! योऽयं सप्रथो महिव्रतः क्रत्वा महिना शोचिषाऽजरो नोर्वी विभाति तस्मै वरुणाय देवाय बृहते सम्राजे प्रियं मन्म त्वं नु प्रार्च ॥९॥