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ता गृ॑णीहि नम॒स्ये॑भिः शू॒षैः सु॒म्नेभि॒रिन्द्रा॒वरु॑णा चका॒ना। वज्रे॑णा॒न्यः शव॑सा॒ हन्ति॑ वृ॒त्रं सिष॑क्त्य॒न्यो वृ॒जने॑षु॒ विप्रः॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā gṛṇīhi namasyebhiḥ śūṣaiḥ sumnebhir indrāvaruṇā cakānā | vajreṇānyaḥ śavasā hanti vṛtraṁ siṣakty anyo vṛjaneṣu vipraḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ता। गृ॒णी॒हि॒। न॒म॒स्ये॑भिः। शू॒षैः। सु॒म्नेभिः। इन्द्रा॒वरु॑णा। च॒का॒ना। वज्रे॑ण। अ॒न्यः। शव॑सा। हन्ति॑। वृ॒त्रम्। सिस॑क्ति। अ॒न्यः। वृ॒जने॑षु। विप्रः॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:68» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:11» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् जन (विप्रः) मेधावी बुद्धिमान् ! आप जिनमें से (अन्यः) सूर्य वा बिजुली (वज्रेणः) किरण समूह के समान शस्त्रास्त्र और (शवसा) बल से (वृत्रम्) मेघ के समान शत्रु को (हन्ति) मारते हैं और जो (अन्यः) वायु के समान (वृजनेषु) मार्ग वा बलों में (सिषक्ति) सींचता है (ता) उन दोनों (इन्द्रावरुणा) वायु और बिजुली के समान (सुम्नेभिः) सुखों से (चकाना) कामना करते हुए (शूषैः) बलों और (नमस्येभिः) अन्नों के बीच सिद्ध हुए पदार्थों से सत्कार को प्राप्त हुओं की (गृणीहि) प्रशंसा करो ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो सभापति और सेनापति, सूर्य और वायु के समान प्रजा के पालनेवाले, उत्तम सेनाजनों से दुष्टों को निवारनेवाले, मेघों के समान प्रजाजनों को कामनाओं से पूरित करते हैं, वे सब से सत्कार करने योग्य हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ कीदृशावित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् विप्रस्त्वं ययोरन्यो वज्रेण शवसा वृत्रं हन्ति। अन्यो वृजनेषु सिषक्ति तेन्द्रावरुणेव सुम्नेभिश्चकाना शूषैर्नमस्येभिः सत्कृतौ गृणीहि ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ता) तौ (गृणीहि) प्रशंस (नमस्येभिः) नमस्स्वन्नेषु भवैः (शूषैः) बलैः (सुम्नेभिः) सुखैः (इन्द्रावरुणा) वायुविद्युताविव (चकाना) कामयमानौ (वज्रेण) किरणसमूहेनेव शस्त्राऽस्त्रेण (अन्यः) सूर्यो विद्युद्वा (शवसा) बलेन (हन्ति) (वृत्रम्) मेघमिव शत्रुम् (सिषक्ति) सिञ्चति (अन्यः) वायुरिव (वृजनेषु) मार्गेषु बलेषु वा (विप्रः) मेधावी ॥३॥
भावार्थभाषाः - यौ सभासेनेशौ सूर्यवायुवत् प्रजापालकावुत्तमैः सैन्यैर्दुष्टनिवारकौ मेघवत् प्रजाः कामैः पूरयतस्तौ सर्वैः सत्कर्त्तव्यौ ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे सभापती व सेनापती सूर्य व वायूप्रमाणे प्रजेचे पालन करतात, उत्तम सेनेने दुष्टांचे निवारण करतात, मेघाप्रमाणे प्रजाजनांच्या कामना पूर्ण करतात ते सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ ३ ॥