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अ॒ने॒नो वो॑ मरुतो॒ यामो॑ अस्त्वन॒श्वश्चि॒द्यमज॒त्यर॑थीः। अ॒न॒व॒सो अ॑नभी॒शू र॑ज॒स्तूर्वि रोद॑सी प॒थ्या॑ याति॒ साध॑न् ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aneno vo maruto yāmo astv anaśvaś cid yam ajaty arathīḥ | anavaso anabhīśū rajastūr vi rodasī pathyā yāti sādhan ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ने॒नः। वः॒। म॒रु॒तः॒। यामः॑। अ॒स्तु॒। अ॒न॒श्वः। चि॒त्। यम्। अज॑ति। अर॑थीः। अ॒न॒व॒सः। अ॒न॒भी॒शुः। र॒जः॒ऽतूः। वि। रोद॑सी॒ इति॑। प॒थ्याः॑। या॒ति॒। साध॑न् ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:66» मन्त्र:7 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:8» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) मनुष्यो ! (वः) तुम्हारा चलन (अनेनः) निष्पाप (अस्तु) हो और (यामः) जिसमें जाते हैं उस प्रहर के समान जो (अनश्वः) ऐसा है कि जिसके घोड़े नहीं हैं (अरथीः) रथ नहीं हैं (अनवसः) अन्न जिसके नहीं है और (अनभीशुः) बलयुक्त बाहू नहीं है तथा जो (रजस्तूः) जल को बढ़ाता है वह (चित्) निश्चय के साथ (यम्) जिसको (अजति) प्रक्षिप्त करता फेंकता है वा (रोदसी) आकाश और पृथिवी के बीच निरन्तर (साधन्) साधता हुआ (पथ्याः) मार्गों में उत्तम गतियों को (वि, याति) विशेषता से जाता है, उसको तुम स्वीकार करो ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! तुम पक्षपातरूपी पाप को छोड़ के निर्बलों की निरन्तर रक्षा कर भूगर्भविद्या और विद्युद्विद्या को अच्छे प्रकार सिद्ध कर भूमि और उदक तथा अन्तरिक्ष के मार्गों को उत्तम यानों से जाकर आओ ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मरुतो ! वोऽनेनोऽस्तु यो याम इवाऽनश्वोऽरथीरनवसोऽनभीशू रजस्तूश्चिद्यमजति रोदसी साधन् पथ्या वि याति तं यूयं स्वीकुरुत ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अनेनः) अविद्यमानमेनः पापं यस्मिँस्तत् (वः) युष्माकम् (मरुतः) मनुष्याः (यामः) यान्ति यस्मिन्त्स यामः प्रहरः (अस्तु) (अनश्वः) अविद्यमाना अश्वा यस्य सः (चित्) अपि (यम्) (अजति) प्रक्षिपति (अरथीः) अविद्यमानरथः (अनवसः) अविद्यमानमवोऽन्नं यस्य सः। अव इत्यन्ननाम। (निघं०२.७) (अनभीशुः) अविद्यमानावभीशू बलयुक्तौ बाहू यस्य सः। अभीशू इति बहुनाम। (निघं०२.४) (रजस्तूः) यो रज उदकं तौति वर्धयति सः (वि) (रोदसी) द्यावापृथिव्योः (पथ्याः) पथिषु साध्वीर्गतीः (याति) गच्छति (साधन्) साध्नुवन् ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यूयं पक्षपाताख्यं पापं विहाय निर्बलान् सततं रक्षित्वा भूगर्भविद्यां विद्युद्विद्यां च संसाध्य भूम्युदकान्तरिक्षस्थान् मार्गानुत्तमैर्यानैर्गत्वाऽऽगच्छत ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोमालंकार आहे. हे माणसांनो ! तुम्ही भेदभाव सोडून निर्बलाचे सतत रक्षण करा. भूगर्भ विद्या व विद्युत विद्या चांगल्या प्रकारे जाणून भूमी, जल व अंतरिक्ष मार्गात उत्तम यानाने जाणे-येणे करा. ॥ ७ ॥