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श्रवो॒ वाज॒मिष॒मूर्जं॒ वह॑न्ती॒र्नि दा॒शुष॑ उषसो॒ मर्त्या॑य। म॒घोनी॑र्वी॒रव॒त्पत्य॑माना॒ अवो॑ धात विध॒ते रत्न॑म॒द्य ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śravo vājam iṣam ūrjaṁ vahantīr ni dāśuṣa uṣaso martyāya | maghonīr vīravat patyamānā avo dhāta vidhate ratnam adya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

श्रवः॑। वाज॑म्। इष॑म्। ऊर्ज॑म्। वह॑न्तीः। नि। दा॒शुषे॑। उ॒ष॒सः॒। मर्त्या॑य। म॒घोनीः॑। वी॒रऽव॑त्। पत्य॑मानाः। अवः॑। धा॒त॒। वि॒ध॒ते। रत्न॑म्। अ॒द्य ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:65» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:6» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसी हों, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पुरुषो ! जो (उषसः) प्रभातवेलाओं के समान (दाशुषे) विद्यादि शुभगुण देनेवाले (विधते) सेवा करते हुए (मर्त्याय) मनुष्य के लिये (श्रवः) श्रवण (वाजम्) विज्ञान (इषम्) अन्न और (ऊर्जम्) पराक्रम को (वहन्तीः) प्राप्त कराती तथा (मघोनीः) बहुत धनवाली (वीरवत्) वीर के समान (पत्यमानाः) प्राप्त होती हुई स्त्रियाँ (अद्य) इस समय (रत्नम्) रमणीय (अवः) रक्षा को प्राप्त होतीं उनको तुम (नि, धात) निरन्तर धारण करो ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो उषा के समान वर्त्तमान, सत्यशास्त्र श्रवणादियुक्त, बलिष्ठ, विचक्षण (चित्र-विचित्र बुद्धियुक्त) धन और ऐश्वर्य्य की बढ़ानेवाली, रक्षा में तत्पर, विदुषी स्त्रियाँ हों, उनके बीच से अपनी-अपनी प्रिया भार्या को सब ग्रहण करें ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ताः कीदृश्यः स्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे पुरुषा ! या उषस इव दाशुषे विधते मर्त्याय श्रवो वाजमिषमूर्जं वहन्तीर्मघोनीर्वीरवत्पत्यमानाः स्त्रियोऽद्य रत्नमवः प्राप्नुवन्ति ता यूयं नि धात ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (श्रवः) श्रवणम् (वाजम्) विज्ञानम् (इषम्) अन्नम् (ऊर्जम्) पराक्रमम् (वहन्तीः) प्रापयन्त्यः (नि) नितराम् (दाशुषे) विद्यादिशुभगुणदात्रे (उषसः) प्रभातवेलाः (मर्त्याय) मनुष्याय (मघोनीः) बहूत्तमधनाः (वीरवत्) शूरवीरतुल्याः (पत्यमानाः) प्राप्नुवन्त्यः (अवः) रक्षणम् (धात) धत्त (विधते) सेवमानाय (रत्नम्) रमणीयम् (अद्य) इदानीम् ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! या उषर्वद्वर्त्तमानाः सत्यशास्त्रश्रवणादियुक्ता बलिष्ठा विचक्षणा धनैश्वर्यवर्धिका रक्षणे तत्परा विदुष्यः स्त्रियः स्युस्तासां मध्यात् स्वस्वप्रियां भार्यां सर्वे गृह्णन्तु ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्या विदुषी स्त्रिया उषेप्रमाणे वर्तमान, सत्यशास्त्र श्रवणांनी युक्त बलवान, विलक्षण बुद्धिमान, धन व ऐश्वर्य वाढविणाऱ्या, रक्षण करण्यात तत्पर असतील तर त्यांच्यामधून आपली प्रिय भार्या निवडावी. ॥ ३ ॥