सं वां॑ श॒ता ना॑सत्या स॒हस्राश्वा॑नां पुरु॒पन्था॑ गि॒रे दा॑त्। भ॒रद्वा॑जाय वीर॒ नू गि॒रे दा॑द्ध॒ता रक्षां॑सि पुरुदंससा स्युः ॥१०॥
saṁ vāṁ śatā nāsatyā sahasrāśvānām purupanthā gire dāt | bharadvājāya vīra nū gire dād dhatā rakṣāṁsi purudaṁsasā syuḥ ||
सम्। वा॒म्। श॒ता। ना॒स॒त्या॒। स॒हस्रा॑। अश्वा॑नाम्। पु॒रु॒ऽपन्थाः॑। गि॒रे। दा॒त्। भ॒रत्ऽवा॑जाय। वी॒र॒। नु। गि॒रे। दा॒त्। ह॒ता। रक्षां॑सि। पु॒रु॒ऽदं॒स॒सा॒। स्यु॒रिति॑ स्युः ॥१०॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर राजा और सेनापति क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुना राजसेनेशौ किं कुर्यातामित्याह ॥
हे पुरुदंससा नासत्या ! यो वां पुरुपन्था अश्वानां गिरे शता सहस्रा सं दाद्यो भरद्वाजाय गिरे शता सहस्रा दाद्येन रक्षांसि हता स्युः। हे वीर ! त्वं तेन दुष्टान् नू हिन्धि ॥१०॥