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ता नव्य॑सो॒ जर॑माणस्य॒ मन्मोप॑ भूषतो युयुजा॒नस॑प्ती। शुभं॒ पृक्ष॒मिष॒मूर्जं॒ वह॑न्ता॒ होता॑ यक्षत्प्र॒त्नो अ॒ध्रुग्युवा॑ना ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā navyaso jaramāṇasya manmopa bhūṣato yuyujānasaptī | śubham pṛkṣam iṣam ūrjaṁ vahantā hotā yakṣat pratno adhrug yuvānā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ता। नव्य॑सः। जर॑माणस्य। मन्म॑। उप॑। भू॒ष॒तः॒। यु॒यु॒जा॒नस॑प्ती॒ इति॑ यु॒यु॒जा॒नऽस॑प्ती। शुभ॑म्। पृक्ष॑म्। इष॑म्। ऊर्ज॑म्। वह॑न्ता। होता॑। य॒क्ष॒त्। प्र॒त्नः। अ॒ध्रुक्। युवा॑ना ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:62» मन्त्र:4 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:1» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (युयुजानसप्ती) वेग वा आकर्षणयुक्त होनेवाले हैं, वे (युवाना) संयुक्त होनेवाले वायु बिजुली (नव्यसः) अतीव नवीन (जरमाणस्य) प्रशंसा करनेवाले के (मन्म) विज्ञान को (उप, भूषतः) पूर्ण करते हैं वा जो (शुभम्) उदक (पृक्षम्) अन्न (इषम्) इच्छा और (ऊर्जम्) पराक्रम को (वहन्ता) पहुँचानेवालों को (अध्रुक्) किसी से न द्रोह करनेवाला (प्रत्नः) जिसने पहिले विद्या पढ़ी वह (होता) ग्रहण करनेवाला पुरुष (यक्षत्) प्राप्त हो (ता) उनको तुम भी प्राप्त होओ ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो वायु और बिजुली विज्ञान के विषय, घोड़े के समान शीघ्र जानेवाले और सब उत्तम-उत्तम पदार्थों की प्राप्ति करानेवाले हैं, उनसे चाहे हुए कार्य्यों को सिद्ध करो ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ कीदृशावित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यौ युयुजानसप्ती युवाना नव्यसो जरमाणस्य मन्मोप भूषतो यौ शुभं पृक्षमिषमूर्जं वहन्ताऽध्रुक् प्रत्नो होता यक्षत् ता यूयमपि सङ्गच्छध्वम् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ता) तौ (नव्यसः) अतिशयेन नवीनस्य (जरमाणस्य) प्रशंसकस्य (मन्म) विज्ञानम् (उप) (भूषतः) अलं कुरुतः (युयुजानसप्ती) युयुजानौ सप्ती वेगाकर्षणौ ययोस्तौ (शुभम्) उदकम्। शुभमित्युदकनाम। (निघं०११.१३) (पृक्षम्) अन्नम् (इषम्) इच्छाम् (ऊर्जम्) पराक्रमम् (वहन्ता) प्रापयन्तौ (होता) आदाता (यक्षत्) सङ्गच्छेत् (प्रत्नः) प्रागधीतविद्यः (अध्रुक्) यः कञ्चन न द्रोग्धि (युवाना) संयोजकौ वायुविद्युतौ ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यौ वायुविद्युतौ विज्ञानविषयावश्व इव सद्यो गन्तारौ सर्वोत्तमपदार्थप्रापकौ वर्त्तेते ताभ्यामिष्टानि कार्याणि साध्नुत ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! वायू व विद्युत विज्ञान अश्वाप्रमाणे शीघ्र गमन करणारे असतात व सर्व उत्तम पदार्थांची प्राप्ती करविणारे असतात. त्यांच्याकडून इच्छित कार्य सिद्ध करा. ॥ ४ ॥