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या वां॒ सन्ति॑ पुरु॒स्पृहो॑ नि॒युतो॑ दा॒शुषे॑ नरा। इन्द्रा॑ग्नी॒ ताभि॒रा ग॑तम् ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yā vāṁ santi puruspṛho niyuto dāśuṣe narā | indrāgnī tābhir ā gatam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

याः। वा॒म्। सन्ति॑। पु॒रु॒ऽस्पृहः॑। नि॒ऽयुतः॑। दा॒शुषे॑। न॒रा॒। इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑। ताभिः॑। आ। ग॒त॒म् ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:60» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:28» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (नरा) नायक (इन्द्राग्नी) विद्या और ऐश्वर्य्ययुक्त अध्यापक और उपदेशको ! (वाम्) तुम दोनों की (या) जो (पुरुस्पृहः) बहुतों की चाहना करते जिनसे वे (नियुतः) निश्चित (सन्ति) हैं (ताभिः) उन इच्छाओं से (दाशुषे) दान देनेवाले के लिये (आ, गतम्) आओ ॥८॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परोपकार करने की इच्छा करते हैं, वे ही सत्पुरुष होते हैं ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ कीदृशावित्याह ॥

अन्वय:

हे नरा इन्द्राग्नी ! वा या पुरुस्पृहो नियुतः सन्ति ताभिर्दाशुष आ गतम् ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (या) याः (वाम्) युवयोः (सन्ति) (पुरुस्पृहः) पुरून् बहूनुत्तमान् कामानभिकाङ्क्षयन्ति याभिस्ताः (नियुतः) निश्चिताः (दाशुषे) दात्रे (नरा) नायकौ (इन्द्राग्नी) विद्यैश्वर्य्ययुक्तावध्यापकोपदेशकौ (ताभिः) स्पृहाभिः (आ) (गतम्) आगच्छतम् ॥८॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः परोपकारं चिकीर्षन्ति त एव सत्पुरुषा भवन्ति ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे परोपकाराची इच्छा बाळगतात ती माणसे सत्पुरुष असतात. ॥ ८ ॥